संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन काप-26 में धरती बचाने को आगे आई दुनिया

ग्लासगो में निर्धारित समय से एक दिन आगे तक चले संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन में धरती को बचाने के लिए करीब 200 देश साथ मिलकर कदम बढ़ाने पर राजी हो गए हैं। काप-26 शिखर सम्मेलन में ‘ग्लोबल वार्मिंग’ के लिए जिम्मेदार उत्सर्जन में कमी लाने के लक्ष्य को हासिल करने के इरादे से शनिवार को एक समझौते पर सहमति जताई। इस सम्मेलन में भारत की धमक बढ़ी है और वह कोयला, पेट्रोल, डीजल और प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से बंद करने के बजाय चरणबद्ध तरीके से कम करने अपने प्रस्ताव पर मुहर लगवाने में सफल रहा है।

हाईलाइट्स

  • काप-26 में कोयले के इस्तेमाल को बंद करने के बजाय कम करने प्रस्ताव पर भारत ने लगवाई मुहर
  • केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा, चर्चा के बाद नए समझौते में कोयले से ऊर्जा की नीति में फेरबदल
  • पर्यावरण सम्मेलन में ऐन मौके पर प्रस्ताव की शब्दावली में बदलाव पर कुछ देशों ने जताई नाराजगी
  • काप-26 के अध्यक्ष ब्रिटेन के मंत्री ने कहा, धरती और निवासियों के लिए एक उपलब्धि के साथ विदा ले रहे
  • समझौते में शामिल देश अगले साल कार्बन कटौती पर चर्चा करने के लिए भी सहमत

कार्बन कटौती पर जारी रहेगी बातचीतइसके साथ ही ग्लासगो जलवायु समझौता हानिकारक जलवायु प्रभाव वाली ग्रीनहाउस गैसों के लिए जिम्मेदार कोयले के उपयोग को कम करने की योजना बनाने वाला पहला संयुक्त राष्ट्र जलवायु समझौता बन गया है। समझौते में शामिल देश अगले साल कार्बन कटौती पर चर्चा करने के लिए भी सहमत हुए हैं ताकि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लक्ष्य तक पहुंचा जा सके।

काप-26 के अध्यक्ष आलोक शर्मा ने समझौते की घोषणा करते हुए कहा, ‘अब हम इस धरती और इसके वासियों के लिए एक उपलब्धि के साथ इस सम्मेलन से विदा ले सकते हैं।’ हालांकि, कई देशों ने जीवाश्म ईंधन पर भारत के रुख की आलोचना की।

विकासशील देशों पर दारोमदार

केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा, ‘विकासशील देशों को वैश्विक कार्बन बजट में अपने उचित हिस्से का अधिकार है और वे इस दायरे में जीवाश्म ईंधन के जिम्मेदार उपयोग के हकदार हैं। ऐसी स्थिति में, कोई कैसे उम्मीद कर सकता है कि विकासशील देश कोयला और जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के बारे में वादा कर सकते हैं, जबकि विकासशील देशों को अब भी अपने विकास एजेंडा और गरीबी उन्मूलन से निपटना है।’

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