रूस और यूक्रेन जंग के बीच क्या भारत उहापोह की स्थिति में है। भारत लंबे वक्त से रूस का मित्र देश रहा है। आखिर भारत की उहापोह की स्थिति क्यों है। इसके पीछे बड़ी वजह क्या है। रूस-यूक्रेन संकट पर मोदी सरकार के रुख की इतनी चर्चा क्यों है। अमेरिका की निकटता के बावजूद रूस आज भी भारत की जरूरत क्यों है। आइए जानते हैं इस मामले में क्या है विशेषज्ञों की राय।
1- प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि दरअसल, भारत और रूस के रिश्तों की जड़े काफी गहरी है। आजादी के बाद भारत ने भले ही गुटनिरपेक्ष नीति का अनुसरण किया, बावजूद इसके वह पूर्व सोवियत संघ के काफी निकट रहा। रक्षा सौदों के साथ दोनों देशों के बीच आर्थिक और सांस्कृतिक रिश्ते भी बेहद मजबूत रहे। इसलिए यह कहा जा सकता है कि दोनों देशों के रिश्ते केवल हथियारों और रक्षा उपकरणों तक ही सीमित नहीं रहे। भारत जब-जब संकट में फंसा है तब तब रूस ने उसका साथ आगे बढ़कर दिया है। प्रो पंत का कहना है कि रूस में भारतीय फिल्मों को बेहद पंसद किया जाता है। यही कारण है कि बालीवुड की फिल्में रूस में भी रिलीज होती है। रूस में बड़ी तादाद में भारतीय छात्र पढ़ने जाते हैं। इतना ही नहीं रूस में केंद्रीय विद्यालय की एक शाखा है। बड़ी तादाद में भारतीय नागरिक रूस में नौकरी करते हैं। उधर, भारत का यूक्रेन के साथ भी बेहतर संबंध हैं। यूक्रेन के साथ भारत के व्यापारिक संबंध हैं। दोनों देशों में भारत के नागरिक रहते हैं। दोनों देशों से भारत के संबंध बेहतर हैं। यही कारण है कि रूस यूक्रेन संकट में भारत ने किसी पक्ष की आलोचना नहीं की। हाल में यूक्रेन के दोनेत्स्क और लुहांस्क को रूस ने स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दी थी। इसके बाद पश्चिमी देशों ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी थी। अमेरिका, यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, जापान और आस्ट्रेलिया ने रूस की कड़ी निंदा की थी, लेकिन इस मामले में भारत पूरी तरह से तटस्थ रहा। भारत सरकार ने न तो रूस की आलोचना की और न ही यूक्रेन की संप्रभुता को रेखांकित किया। सुरक्षा परिषद में गैर नाटो देशों में भारत ने सबसे पहले यूक्रेन संकट पर बोला। भारत ने इस बात पर जोर दिया कि इस समस्या का समाधान कूटनीति के जरिए होना चाहिए। दोनों देशों के तनाव कम करने के लिए वार्ता पर जोर दिया।
प्रो पंत ने कहा कि रूस और भारत के गहरे रिश्ते हैं। दूसरे, भारत अपने हितों के विपरीत फैसला नहीं ले सकता। यही वजह है कि जब मार्च, 2014 में रूस ने क्राइमिया को अपने देश में मिलाया तब भारत के तत्कालीन मनमोहन सिंह की सरकार ने इस फैसले का विरोध नहीं किया था। उस वक्त रूसी राष्ट्रपति ने भारत के संयम और निष्पक्षता की बहुत सराहना की थी। इसलिए यह कहा जा सकता है कि भारत में चाहे जिस पार्टी की सरकार हो रूस के साथ संबंधों की अनदेखी नहीं कर सकती।
5- वर्ष 2014 में रूस ने जब क्राइमिया को अपने में मिला लिया था, तब भी भारत ने बहुत कम बोला था। इसे लेकर संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव आया तो भारत वोटिंग से बाहर रहा था। भारत में उस वक्त कांग्रेस और सहयोगी दल की सरकार थी। आज भारत में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, लेकिन रूस के मामले में भारत का रुख आज भी वही है। प्रो पंत ने कहा कि वर्ष 2014 की तुलना में भारत और अमेरिका एक दूसरे के निकट आए है, लेकिन रूस को लेकर भारत ने अपने स्टैंड का साफ किया है।