राष्ट्रीय कवि सम्मेलन मे बही एकता तथा सदभावना व साहित्य की रसधार

लालगंज, प्रतापगढ़। नगर के संकटमोचन मैरिज हॉल मे हुए राष्ट्रीय कवि सम्मेलन मे कविता और गीत तथा गजल की बही साहित्यिक रसधार मे राष्ट्रीयता व सदभावना का संदेश गूंज उठा दिखा। कवि सम्मेलन का बतौर विशिष्टअतिथि एसडीएम बीके प्रसाद व बाबा नरेन्द्र ओझा ने मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण व दीप प्रज्जवलन कर शुभारंभ किया। एसडीएम बीके प्रसाद ने कहा कि साहित्य ने सदैव राष्ट्रीय एकता तथा प्रगति को दिशा देते हुए नागरिक चेतना को जीवंत बनाने मे अग्रणी योगदान दे रखा है। कवयत्री सानिया सिंह ने सरस्वती वंदना की प्रस्तुति देकर वीणापाणि की आराधना के सुर झंकृत किये। जाने माने गजलकार आफताब आलम ने पढा- हमने सींचा है अपना वतन हर घड़ी देके अपना लहू, तुमने फिर कैसे ये कह दिया इस वतन मे गुजारा नही। हास्य कवि प्रयागराज के अशोक बेशर्म ने पढ़ा- भीख मांगे जो अदाकारी से बचके रहना तुम उस भिखारी से खूब हंसी ठिठोली मे जमी दिखी। रायबरेली के संदीप शरारत की- एसपी पुलिस से बोले सफाई पे ध्यान दो, फिर उसने दरोगा की जेब साफ कर दिया…पर भी खूब ठहाके लगे। जाने माने गजलकार एवं कई पुरस्कारो से नवाजे गये डा. नागेन्द्र अनुज ने हमारे देश की नइया का है भगवान ही मालिक जिसे पतवार पकडा दो वहीं लूला निकलता है से वाहवाही बटोरी। कवयत्री सानिया सिंह ने पढ़ा- मेरे बेटो मै तुम सबकी सच्ची भाग्यविधाता हूं, मैं भारत की अमर आत्मा प्यारी भारत माता हूं। प्रख्यात हास्यकवि मधुप श्रीवास्तव नरकंकाल ने हास परिहास का जब पिटारा खोला तो श्रोताओ से खचाखच भरा हाल अपनी हंसी संभाले न संभाल सका। नरकंकाल ने- एक परदेसी मेरा दिल ले गया, दे हाथों मे नागरिकता का बिल दे गया है। रायबरेली के निर्मल श्रीवास्तव ने पढ़ा- वतन की मांग पे जीवन को निछावर कर दे, जिंदगी नाम है कुछ करके गुजर जाने का। भी श्रोताओ ने वतन परस्ती के जज्बे को गहराईयां देती दिखी। पुष्कर सुल्तानपुरी ने पढ़ा- दहशत मे जीने वालो मुझको बुला के देखो इक हम ही है बनाते है मौसम को शायराना भी दाद मे दिखी। पंकज श्रीवास्तव की रचना अब तो सपने भी आने लगे है रातो मे मै अक्सर लाल किले पर झंडा फहराता हूं। के व्यंग ने सियासत को आइना दिखाया। संचालन कर रहे अनुज अवस्थी ने भी राष्ट्रीयता के मंच पर अपना प्रभाव छोडा। अवस्थी ने पढा- है शपथ तुमको कहारों तुमको, डोलियो के वास्ते आओ कुछ ऐसा करें हम बेटियो के वास्ते। कौस्तुभराज ने पढ़ा-जातिधर्म के भेदभावो का गंदा ईमान न रखें भी जमकर सराही गई। महेन्द्र कुमार ने पढ़ा- ऐसा जीना भी क्या जीना, जिसमे जी न लगे। आयोजक कवि लवलेश यदुवंशी ने महिला सशक्तीकरण पर पढ़ा- बडे ही शौक से बाबुल मेरे अक्सर कहा करते, किसी का भाग्य अच्छा हो तो बेटी पैदा होती है। भी खूब समर्थन की तालियां अपने नाम करती दिखी। अध्यक्षता रायबरेली के प्रख्यात साहित्यकार बृजेश श्रीवास्तव तन्हा ने किया। इसके अलावा बृजेश श्रीवास्तव तन्हा, विख्यात मिश्रा, परवाना प्रतापगढ़ी, हरिवंश शुक्ल, गीतगार गजेन्द्र सिंह विकट, साहित्यकार केसरीनंदन शुक्ल, अनूप त्रिपाठी तथा नवोदित कवि महेन्द्र कुमार की रचनाएं भी खूब सराही गई। प्रारम्भ मे साहित्यकारो का सह संयोजक पवन प्रखर ने स्वागत तथा जयप्रकाश सरस ने आभार जताया। संयोजक लवलेश यदुवंशी ने राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का सफलतापूर्वक संयोजन करते दिखे। 

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