मैथिलीशरण गुप्त की कविताए आज भी प्रासंगिक: डाॅ कविता

प्रयागराज। मैथिलीशरण गुप्त ने अपने समय में जो कविताएं लिखी वह आज भी प्रासंगिक हैं। जिस राष्ट्रीय चेतना की तब आवश्यकता थी वह आज भी है। प्रकाश चन्द्र जुगमन्दर दास अग्रवाल लोकहित ट्रस्ट, प्रयागराज का उद्देश्य हिन्दी भाषा का प्रचार प्रसार करना है।
यह बातें प्रकाश चन्द्र जुगमन्दर दास अग्रवाल लोकहित ट्रस्ट प्रयागराज की मुख्य ट्रस्टी डाॅ. कविता अग्रवाल ने हिन्दुस्तानी एकेडेमी एवं प्रकाश चन्द्र जुगमन्दर दास अग्रवाल लोकहित ट्रस्ट प्रयागराज के संयुक्त तत्वावधान में शुक्रवार को गांधी सभागार में ‘मैथिलीशरण गुप्त की रचना में राष्ट्रीय चेतना’ विषयक राष्ट्रीय सगोष्ठी में सम्बोधित करते हुए कही। सम्मानित वक्ता दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. अनिल राय ने कहा कि राष्ट्रीय चेतना मैथिलीशरण गुप्त को संस्कार रूप में मिली थी, मैथिलीशरण गुप्त का समय बहुत सारी हलचलों का था। भाषा के रूप में था, जागरण के रूप में था, मैथिलीशरण गुप्त ने हिन्दी को ब्रजभाषा के शिकन्जे से मुक्त किया, सिर्फ ब्रजभाषा से काम नहीं चल सकता था। मैथिलीशरण गुप्त ने साकेत लिखकर खड़ी बोली हिन्दी को प्रतिष्ठित किया। उन्होंने अपनी रचनाओं में राष्ट्रीय चेतना के माध्यम से विश्व मानवता का आख्यान कह रहे थे।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए डाॅ. उदय प्रताप प्रताप सिंह ने कहा कि हमारे महात्मा, कवि, साहित्यकार जातियों में बंटते जा रहे हैं। हमारे जीवन में राजनीति का प्रभाव पड़ रहा है और राजनीति हमें तोड़ रही है। सभी वर्ग जातियों में सिमट रहे हैं। पहले आलोचक कहते थे कि खड़ी बोली में कविता लिखी नहीं जा सकती। मैथिरलीशरण गुप्त ने एक नये तेवर और कलेवर के साथ साकेत लिख कर खड़ी बोली को समृद्ध किया। वक्ता रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. त्रिभुवन नाथ शुक्ल ने कहा कि मैथिलीशरण गुप्त का साहित्य भारतीय साहित्य का चरित्र कोश है। उनको पढ़ने के बाद मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है कि भारतीयता, मानवता, संस्कृति एवं आध्यात्म का कोई भी पक्ष ऐसा नहीं है जो उनके साहित्य मे न हो। विश्व की कोई भी लड़ाई ऐसी नहीं है जो साहित्य की बैशाखी के बिना लड़ी गयी है।
वक्ता प्रो. रामकिशोर शर्मा ने कहा कि मैथिलीशरण गुप्त जितना अपने समय मे प्रासंगिक हैं, उतना आज भी हैं। उन्होंने सामंती मूल्यों को तोड़कर श्रम संस्कृति को स्थापित किया। उन्होंने खड़ी बोली को कविता की भाषा बनाने में बहुत योगदान दिया। इसी क्रम में डाॅ. विक्रम मिश्र, डाॅ. सुनील विक्रम सिंह, डाॅ. राकेश कुमार सिंह, डाॅ.रामकृष्ण जायसवाल आदि ने कहा कि मैथिलीशरण ने सबका समावेश किया है। वह राम, रहीम, बुद्ध, ईशा सबको मानते हैं। वह एक तरफ अतीत की बात करते है तो दूसरी तरफ भविष्य की। गुप्त जी को समझने के लिए हमें अपने अतीत को समझना पड़ेगा। अपनी गीता, रामायण वैदिक ग्रन्थों को समझना पड़ेगा। कार्यक्रम का संचालन डाॅ.सुजीत कुमार सिंह एवं डाॅ.श्लेष गौतम ने किया।

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