सच्चा अच्छा शिष्य वही जो गुरु के बताए हुए मार्ग पर स्वयं चले
अगर धर्म को आगे बढ़ाना है तो हमारे मुसलमान भाइयों से सीखो
प्रयागराज।विश्व शांति सेवा चैरिटेबल ट्रस्ट के तत्वावधान में 15 से 21 नवम्बर 2021 तक प्रतिदिन इलाहाबाद मेडिकल एसोसिएशन ऑडिटोरियम, महाराणा प्रताप चौराहा – प्रयागराज में दोपहर 1:30 बजे 4:30 बजे तक पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज के मुखारबिंद से श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है।
कथा के चतुर्थ दिवस पर महाराज श्री ने प्रभु के वामन अवतार के वृतांत का विस्तार पूर्वक वर्णन भक्तों को करवाया एवं कृष्ण जन्मोत्सव को बड़ी धूमधाम से मनाया। कथा के चतुर्थ दिवस पर भक्तों ने महाराज जी के श्रीमुख से कथा का श्रवण किया।
भागवत कथा के चतुर्थ दिवस की शुरुआत भागवत आरती और विश्व शांति के लिए प्रार्थना के साथ की गई।
पूज्य श्री देवकीनन्दन ठाकुर जी महाराज ने कथा पंडाल में बैठे सभी भक्तों को भजन “मुझे ऐसी लगन तू लगा दे ” श्रवण कराया”।
पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा की शुरूआत करते हुए कहा कि कार्तिक मास की बैकुंठ चतुर्दशी उस पर भी भगवान का प्रकाट्योत्सव हम लोग मनाने आये है वो भी प्रयागराज में आये है इससे बड़ा सौभाग्य और क्या होगा। हम लोग तीर्थो में रहते है तो हम लोगो को थोड़ा घमंड रहता है लेकिन तीर्थो में रहकर पाप भी कर रहे है उसका क्या जितना तीर्थो में रहने का पुण्य लेते हो उतना ही झूठ बोलकर पाप भी तो करते हो यहाँ का पाप मिटेगा नहीं। तो अगर यहाँ के पुण्य फलदायी है तो पाप भी तो हम लोग इकट्ठे करते जा रहे है तो उनका क्या करें तो इसलिए ज्यादा कुछ न कर सको तो कम से कम पुण्य इकट्ठे तो करो। तीर्थो में रहने वालो की ज्यादा जिम्मेदारी बनती है की हम लोग पहले जाये जल्दी जाये ज्यादा से ज्यादा पुण्य करे। पूर्व जन्म के कर्मो के कारण हमें तीर्थ में वास मिला। लेकिन इस जन्म में कुछ अच्छा नहीं करेंगे तो फिर क्या होगा ? इसलिए प्रेमपूर्वक मनुष्य जीवन में हमें कही भी अवसर मिले हम कही भी जी रहे हो प्रेमपूर्वक हमें सत्कर्म से भगवान के उत्सवों से जुड़े ही रहना चाहिए। जो मनुष्य होकर भी सत्कर्मों से नहीं जुड़े रहते उनका क्या लाभ होना न होना बराबर ही है।
महाराज श्री ने कहा कि सच्चा अच्छा शिष्य वही जो गुरु का इशारा समझे इशारे के मुताबिक काम करें सत्य सनातन को अगर घर – घर पहुँचाना है तो आपको अपने गुरु के बताये हुए मार्ग पर चलना ही पड़ेगा जब तक आप अपने गुरुजनों का संग नहीं देंगे उनका का साथ नहीं देंगे उनके भाव को नहीं समझेंगे उनके बताये हुए मार्ग पर नहीं चलेंगे तो कैसे वो कितना भी प्रयास करें अगर धर्म को आगे बढ़ाना है तो हमारे मुसलमान भाइयों से सीखो अपने धर्म गुरुओ का कैसे पीछा करते है राज्य वही अच्छा राजा वही अच्छा लोग वही अच्छे समाज वही अच्छा जहाँ सत्य का सम्मान हो और असत्य का अपमान हो। हमारा धर्म क्या सिखाता है ? भागवत में आदि मध्य और अंत तीनों जगहों पर सत्य का वर्णन किया गया है और जब असत्य हो और आप सत्य का संग न दे समाज भी असत्य को स्वीकार कर ले सत्य के साथ न खड़ी हो न तो समाज का भला हो सकता है न उस देश का भला हो सकता न उस प्रजा का भला हो सकता आप सत्य को समझिये आप सत्य को जानिए अपना बुद्धि अपना विवेक इस्तेमाल कीजिये और सत्य समझाने का कार्य हमारे ग्रन्थ करते है।
पूज्य श्री देवकीनंदन ठाकुर जी ने श्रीमद्भागवत कथा चतुर्थ दिवस के प्रसंग का वृतांत सुनाते हुए बताया कि वामन अवतार भगवान विष्णु के दशावतारो में पांचवा अवतार और मानव रूप में अवतार था। जिसमें भगवान विष्णु ने एक वामन के रूप में इंद्र की रक्षा के लिए धरती पर अवतार लिया। वामन अवतार की कहानी असुर राजा महाबली से प्रारम्भ होती है। महाबली प्रहलाद का पौत्र और विरोचना का पुत्र था। महाबली एक महान शासक था जिसे उसकी प्रजा बहुत स्नेह करती थी। उसके राज्य में प्रजा बहुत खुशऔर समृद्ध थी। उसको उसके पितामह प्रहलाद और गुरु शुक्राचार्य ने वेदों का ज्ञान दिया था। समुद्रमंथन के दौरान जब देवता अमृत ले जा रहे थे तब इंद्रदेव ने बाली को मार दिया था जिसको शुक्राचार्य ने पुनः अपन मन्त्रो से जीवित कर दिया था।
महाबली ने भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी जिसके फलस्वरूप भगवान ब्रह्मा ने प्रकट होकर वरदान मांगने को कहा। बाली भगवान ब्रह्मा के आगे नतमस्तक होकर बोला “प्रभु, मै इस संसार को दिखाना चाहता हूँ कि असुर अच्छे भी होते हैं। मुझे इंद्र के बराबर शक्ति चाहिए और मुझे युद्ध में कोई पराजित ना कर सके। भगवान ब्रह्मा ने इन शक्तियों के लिए उसे उपयुक्त मानकर बिना प्रश्न किये उसे वरदान दे दिया।
शुक्राचार्य एक अच्छे गुरु और रणनीतिकार थे जिनकी मदद से बाली ने तीनो लोकों पर विजय प्राप्त कर ली। बाली ने इंद्रदेव को पराजित कर इंद्रलोक पर कब्जा कर लिया। एक दिन गुरु शुक्राचार्य ने बाली से कहा अगर तुम सदैव के लिए तीनो लोकों के स्वामी रहना चाहते हो तो तुम्हारे जैसे राजा को अश्वमेध यज्ञ अवश्य करना चाहिए।
बाली अपने गुरु की आज्ञा मानते हुए यज्ञ की तैयारी में लग गया। बाली एक उदार राजा था जिसे सारी प्रजा पसंद करती थी। इंद्र को ऐसा महसूस होने लगा कि बाली अगर ऐसे ही प्रजापालक रहेगा तो शीघ्र सारे देवता भी बाली की तरफ हो जायेंगे।
इंद्रदेव देवमाता अदिति के पास सहायता के लिए गए और उन्हें सारी बात बताई। देवमाता ने बिष्णु भगवान से वरदान माँगा कि वे उनके पुत्र के रूप में धरती पर जन्म लेकर बाली का विनाश करें। जल्द ही अदिति और ऋषि कश्यप के यहाँ एक सुंदर बौने पुत्र ने जन्म लिया। पांच वर्ष का होते ही वामन का जनेऊ समारोह आयोजित कर उसे गुरुकुल भेज दिया।
इस दौरान महाबली ने 100 में से 99 अश्वमेध यज्ञ पुरे कर लिए थे। अंतिम अश्वमेध यज्ञ समाप्त होने ही वाला था कि तभी दरबार में दिव्य बालक वामन पहुँच गया।
महाबली ने कहा कि आज वो किसी भी व्यक्ति को कोई भी दक्षिणा दे सकता है। तभी गुरु शुक्राचार्य महाबली को महल के भीतर ले गये और उसे बताया कि ये बालक ओर कोई नहीं स्वयं भगवान विष्णु हैं वो इंद्रदेव के कहने पर यहाँ आए हैं और अगर तुमने इन्हें जो भी मांगने को कहा तो तुम सब कुछ खो दोगे।
महाबली अपनी बात पर अटल रहे और कहा मुझे वैभव खोने का भय नहीं है बल्कि अपन प्रभु को खोने का है इसलिए मै उनकी इच्छा पूरी करूंगा।
महाबली उस बालक के पास गया और स्नेह से कहा “आप अपनी इच्छा बताइये”।
उस बालक ने महाबली की और शांत स्वभाव से देखा और कहा “मुझे केवल तीन पग जमीन चाहिए जिसे मैं अपने पैरों से नाप सकूं”।
महाबली ने हँसते हुए कहा “केवल तीन पग जमीन चाहिए, मैं तुमको दूँगा।
जैसे ही महाबली ने अपने मुँह से ये शब्द निकाले वामन का आकार धीरे धीरे बढ़ता गया। वो बालक इतना बढ़ा हो गया कि बाली केवल उसके पैरों को देख सकता था। वामन आकार में इतना बढ़ा था कि धरती को उसने अपने एक पग में माप लिया।
दुसरे पग में उस दिव्य बालक ने पूरा आकाश नाप लिया। अब उस बालक ने महाबली को बुलाया और कहा मैंने अपने दो पगों में धरती और आकाश को नाप लिया है। अब मुझे अपना तीसरा कदम रखने के लिए कोई जगह नहीं बची, तुम बताओ मैं अपना तीसरा कदम कहाँ रखूँ।
महाबली ने उस बालक से कहा “प्रभु, मैं वचन तोड़ने वालों में से नहीं हूँ आप तीसरा कदम मेरे शीश पर रखिये।
भगवान विष्णु ने भी मुस्कुराते हुए अपना तीसरा कदम महाबली के सिर पर रख दिया। वामन के तीसरे कदम की शक्ति से महाबली पाताल लोक में चला गया। अब महाबली का तीनो लोकों से वैभव समाप्त हो गया और सदैव पाताल लोक में रह गया। इंद्रदेव और
अन्य देवताओं ने भगवान विष्णु के इस अवतार की प्रशंशा की और अपना साम्राज्य दिलाने के लिए धन्यवाद दिया। इसके बाद पूज्य महाराज श्री के सानिध्य में सभी भक्तों ने श्री कृष्ण जन्मोत्सव को बड़ी धूमधाम से मनाया।
श्रीमद् भागवत कथा के पंचम दिवस पर भगवान कृष्ण की बाललीला, गोवर्धन पूजा, छप्पन भोग का वृतांत सुनाया जाएगा।