महामना उपाधि से विभूषित भारत के पहले और अन्तिम व्यक्ति: युगल किशोर
प्रयागराज। पं. मदन मोहन मालवीय वर्ष 1884 मंे कलकत्ता विश्वविद्यालय से बीए की शिक्षा पूरी की और 40रु मासिक वेतन पर इलाहाबाद जिले में शिक्षक बन गये। उन्होंने अग्रणी भूमिका निभाते हुये काशी हिन्ंदू विश्वविद्यालय की स्थापना भी की।
उक्त विचार क्षेत्रीय शिशु वाटिका प्रमुख विजय उपाध्याय ने प्रो. राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया) शिक्षा प्रसार समिति द्वारा संचालित ज्वाला देवी सरस्वती विद्या मन्दिर इण्टर काॅलेज मंे गुरूवार को मदन मोहन मालवीय जयंती की पूर्व संध्या पर व्यक्त किया। उन्होंने मालवीय के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि मदन मोहन मालवीय का जन्म इलाहाबाद के एक ब्राह्ममण परिवार में 25 दिसम्बर 1861 को हुआ था। उनकी शिक्षा महाजनी स्कूल से पाॅच वर्ष की उम्र में प्रारम्भ हुई। इसके बाद वह धार्मिक विद्यालय चले गये। जहां उनकी शिक्षा-दीक्षा हरादेव के मार्गदर्शन में हुई। यहीं से उनकी सोच पर हिंदू धर्म व भारतीय संस्कृति का प्रभाव पड़ा।
विद्यालय के प्रधानाचार्य युगल किशोर मिश्र ने कहा कि मालवीयजी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रणेता तो थे ही इस युग के आदर्श पुरुष भी थे। वे भारत के पहले और अन्तिम व्यक्ति थे, जिन्हें महामना की उपाधि से विभूषित किया गया। पत्रकारिता, वकालत, समाज सुधार, मातृ भाषा तथा भारतमाता की सेवा में अपना जीवन अर्पण करने वाले इस महामानव ने जिस विश्वविद्यालय की स्थापना की उसमें उनकी परिकल्पना ऐसे विद्यार्थियों को शिक्षित कर देश सेवा के लिये तैयार करने की थी, जो देश का मस्तक गौरव से ऊंचा कर सकें। मालवीयजी सत्य, ब्रह्मचर्य, देशभक्ति तथा आत्मत्याग में अद्वितीय थे। इन समस्त आचरणों पर वे केवल उपदेश ही नहीं दिया करते थे, अपितु स्वयं उनका पालन भी किया करते थे। वे अपने व्यवहार में सदैव मृदुभाषी रहे।
कार्यक्रम का संचालन विद्यालय के वरिष्ठ आचार्य ओम प्रकाश ने किया। कार्यक्रम में क्षेत्रीय खेलकूद प्रमुख जगदीश सिंह, अजीत सिंह, अखिलेश मिश्र, चन्द्रशेखर सिंह, विनोद मिश्र, शिवशंकर सिंह, श्रीप्रकाश यादव, रत्नेश चतुर्वेदी, दीपक यादव, सरोज दुबे, सन्दीप गुप्ता सहित विद्यालय के समस्त आचार्य बन्धु उपस्थित रहे।