मानस विश्व का हृदय है, यहां परम् तत्व मौजूद – मोरारी बापू

विमलेश मिश्र

प्रयागराज ! सन्त कृपा सनातन संस्थान, नाथद्वारा की ओर से अरैल में चल रही रामकथा “मानस अक्षयवट”  के पांचवे दिन बुधवार को कथा मर्मज्ञ मोरारीबापू ने मन, मानस और मुक्ति के अर्थ बोध कराया। बापू ने कहा कि हमारे मन से अच्छे और बुरे सभी प्रकार के विचार खत्म हो जाए तो मन बचता ही नहीं है। अच्छे-बूरे विचारों का बंडल ही मन है। मन को कभी बुरा मत मानना। मन नहीं हो तो जीवन का रस नहीं ले पाओगे। मन प्यारा है। बापू कहते हैं कि श्रीकृष्ण ने भी जीवन रस में मन को स्वीकार किया है। मन को उछलकूद करने दो, जब वह थक जाएगा तो खुद ही शांत हो जाएगा।

बापू ने कहा कि मन से टकरार न करो। मन ही देवता, मन ही ईश्वर है। मन से बड़ा कोई नहीं है। जिस प्रकार दर्पण को देखकर हम ठीक होते हैं उसी प्रकार मन को निहारना चाहिए। अपने मन के दर्पण को स्वच्छ करें। मन चंचल है, उसे पकड़ा नहीं जा सकता है, लेकिन मन बहुत प्यारा है।
मानस विश्व का हृदय है, यहां परम् तत्व मौजूद
बापू कहते हैं कि मानस हृदय है। भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं कि परमात्मा सबके हृदय में विद्यमान है। ऐसा दिल, जो दिल का भी दिल है। वहां परम तत्व की मौजूदगी होती है। आप भले ही गहरी नींद में हो तो भी धड़कन चलती है। नींद में धड़कन की आवाज नहीं सुनाई देती, लेकिन आपको आभास हो जाता है कि मेरा गुरु आ रहा है। बापू कहते हैं कि आपको अपने गुरु की स्मृति आ जाए, वो आपको नींद में ही उसके होने का संकेत दे, वहीं दिल है। परमात्मा हमारे दिल पर बिना छिले दस्तक देता है। कोई ऐसा है जो अंधेरे से पहले दिया जला देता है। जब हमारे जीवन में लोभ, अहंकार आने लगता है तब बुद्धपुरुष हमारे दिल में दिया प्रकट कर देता है। उसी की सदा है, उसी की राह है ये। बापू कहते हैं कि चिंता मुक्त रहिए। मानस विश्व का हृदय है। कोई स्वीकार करें या न करें, उसकी मर्जी, लेकिन मानस में ईश्वर बैठा है। उसकी आवाज, मानस की आवाज़ है जो गुरु के चरणों में बैठकर ही सुनाई देती है।

हम सब मनु की संतान, मनुस्मृति में विद्रोहियों ने डाले विरोधी श्लोक

“मानस अक्षयवट” कथा  के दौरान मोरारीबापू ने कहा कि कुछ लोग, कुछ लोगों को मनुवादी कहते हैं। मनु हमारा पूर्वज है, हम चाहे किसी भी वर्ग, धर्म से हो, सब मनु की संतान है। हम सब मनु से पैदा हुए हैं, इसीलिए हम मनुज कहलाएं। जैसे जल से जलज निकला वैसे ही हम मनु से मनुष्य कहलाएं। हम जिस मनु की संतान है वह स्वयं मन है। पृथ्वी के सभी जीव मनु के संतान है। कोई भले स्वीकार नहीं करें, आदि में जाओ, सत्य यही है।  बापू ने कहा कि मैं मनुवादी नहीं हूँ। मनु हमारा पिता है, लेकिन कोई वाद हमें पसंद नहीं।

डिबेट नहीं, डायलॉग करें, लोगों को निकट लाएमोरारीबापू ने कहा कि डिबेट के नाम पर टीवी, चैनल वाले कचरा डाले ही जा रहे हैं। एक ही बात बार-बार करके कचरा डाल रहे हैं, जबकि डिबेट नहीं डायलॉग होना चाहिए। बहस नहीं, संवाद होना चाहिए। मैं जितना हो सके तुम्हें निकट लाना चाहता हूँ। इससे पूर्व जब बापू ने श्रोताओं से चिट्टी में सवाल लिए तो एक भक्त ने खुद को आम और पास में बैठने वालों को खास बताते हुए बापू से प्रेम नाराजगी जताई। इस पर बापू ने अपने श्रोता को व्यासपीठ पर बुलाया और कहा कि कोई मेरा खास नहीं है और कोई मेरे  आसपास नहीं है। मैं सबके पास हूँ।  किसी को मेरा पास बैठने का गुरुर और किसी को दूर होने का गिला नहीं होना चाहिए, मैं सबके पास हूँ। बापू कहते हैं कि प्रेम तो फकीरी है, जो प्रेम का कफन पहना देता है। फकीरी भी सर्वोच्च नशा है। साधुता सबसे बड़ा है। कोई मजे में हैं तो या तो वो फ़क़ीर है या फिर नशे में हैं।
जब हृदय ही न चले, मन भी न लग रहा हो, वह मुक्ति है
मानस अक्षयवट” में बापू ने कहा कि जब आपको यह समझ आए जाए कि मन नहीं है, आप अमन हो जाए। ऐसी स्थिति जब मन न हो, दिल धड़कता हो, न भी हो। वह मुक्ति है। वह ज्ञानियों का मार्ग हो जाएगा, वह मुक्ति है। बापू कहते है जैसे राम जीवन, कृष्ण जीवन रस देते हैं उसी प्रकार शिव जीवन मे आने वाले विष को पीने की ताकत देते हैं। शिव विषम परिस्थितियों में जीना सीखा देते हैं। बापू ने कहा कि वक्ता पोथी नहीं, दिल खोलता है। उसका राज, उसके रहस्य बिना गुरु के प्राप्त नहीं हो सकते हैं।
रामचरितमानस में तुलसी ने लिखा, मन तीर्थराज प्रयाग है
मोरारीबापू कहते हैं कि तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस में लिखा है कि मन तीर्थराज प्रयाग है। तुलसीदासजी मन को प्रयाग कहते हुए लिखते हैं कि वहां भी एक अक्षयवट है। जब प्रलय आता है और कुछ भी नहीं बचता है। सब तरफ जल ही जल हो जाता है तब अक्षयवट सुरक्षित रहता है और अक्षयवट के एक पत्ते में प्रभु होते हैं। प्रलय से अक्षयवट डूब न जाए इसलिए बढ़ता जाता है, ऐसा पुराण में लिखा है। बापू कहते हैं कि प्रलय के समय एक अक्षयवट टिकता, प्रयाग टिकता है और उस अक्षयवट में परमात्मा टिकते हैं। जो व्यापक है, उसे भी प्रलय के समय अक्षयवट का आश्रय लेना पड़ता है, यहीं उसका परम प्रमाण है, अक्षयवट की यह महिमा है। बापू खुशी जाहिर करते हुए कहते हैं कि अक्षयवट का दर्शन करने वालों को अक्षयवट का पत्ता प्रसाद के रूप में दिया जाता है। अक्षयवट का पत्ता प्रसाद है, यह अच्छा है। जिसमें मुकुंद समाया है, उससे अच्छा प्रसाद क्या हो सकता है।
जहां प्रेम है वहां मिलन, प्रेम का अंश पर्याप्त
बापू कहते हैं कि जहां प्रेम है, वहां मिलन है। प्रेम का अंश ही पर्याप्त है। राम प्रेम शिशु रूपा है। राम ही प्रेम है। सत्य का अपने पर प्रयोग करो, यह मत सोचो कि दूसरा कैसा बर्ताव कर रहा है। बापू कहते हैं कि प्रेम का प्रयोग परस्पर करना चाहिए। करुणा सत्य है, यह धर्म नहीं, प्रेम सभा है। रामचरितमानस में जनक का प्रेम प्रयाग है। मन प्रयाग है, जानकी जी का स्नेह अक्षयवट है। बापू कहते हैं कि गुरु अनावरण करता है, जो स्मृति में नहीं है, वह स्मृति में लाता है। जिससे भी हमें शास्त्र प्राप्त हुआ, उसका स्मरण करना चाहिए, उससे प्रतिस्पर्धा नहीं करनी चाहिए। ज्ञान जब विकट हो जाए तब प्रेम ही बचाता है। प्रेम स्नेह के रूप में अक्षयवट है, जो मुनियों के मन को मोहित करता है। परमात्मा का नाम अक्षयवट है, परमात्मा का नाम हमारा छत्र है। बापू ने कहा कि प्रेम की बोली में सुसंस्कृत और व्याकरण नहीं होती है। प्रेम की तोतली भाषा है।
परमात्मा की बताई यह परिभाषा, अवतार के गिनाएं कारण
राम कथा के दौरान मोरारीबापू ने शिवपार्वती प्रसंग का उल्लेख करते हुए परमात्मा की परिभाषा बताई, उसके अनुसार जो बिना पैर चले, बिना हाथ काम करें, बिना आंख देखें और बिना वाणी के वक्ता हो, वही परमात्मा है। वही निराकार है, वह अवतार लेता है, वह भक्तों का प्रेम है। प्रेम के वश परमात्मा अपने नियम बदल देते हैं और मनुष्य रूप में आते हैं। बापू कहते हैं कि भगवान सबका कारण है, भगवान का कोई कारण नहीं। परमात्मा के होने के कारण यह सब चलता है। परमात्मा को कोई और नहीं चलाता है। परमात्मा भक्त के दुख मिटाने के लिए विविध रूप लेता है। बापू कहते हैं कि ईश्वर जिसको जैसा बनाता है, वह वैसा बन जाता है। प्रभु की कृपा से ज्ञानी, मूढ़ और मूढ़ ज्ञानी बन जाता है। हमारे कर्म इकट्ठा होकर हमें भाग्य के रूप में मिलते हैं। इसके साथ ही बापू ने भगवान विष्णु के राम, कृष्ण, वराह, नृसिंह आदि अवतार लेने के पीछे के कारणों को प्रसंग के जरिए बताकर श्रोताओं का मार्गदर्शन किया।
मानस अक्षयवट” के पंडाल में श्रीराम का  जन्मोत्सव
अरैल में चल रही राम कथा “मानस अक्षयवट के पांचवे दिन भगवान श्रीराम का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया। “भए प्रकट कृपाला दीनदयाला, कौशल्या हितकारी। हर्षित महतारी मुनि मन हारी, अद्भुत रूप विचारी… गाते हुए जब मोरारीबापू ने प्रभु राम के जन्म का बखान किया तो श्रद्धालु आह्लादित हो गए। पांडाल में बैठे भक्तजन झूमने लगे, नाचने लगे। पूरा पांडाल “जय सिया राम”  के जयकारों से गूंज उठा। तमाम भक्त बापू को निहारती आंखों से, हाथ ऊपर उठाएं भाव विभोर हुए नृत्य करने लगे। बापू राम जन्म की चौपाई गाते हुए प्रभु  जन्म की खुशी में लीन थे, भक्त भी राम नाम की धून और भक्ति रस धारा में डूबे नज़र आए। “मानस अक्षयवट” कथा अवसर पर कथा के मुख्य आयोजक मदन पालीवाल, रविन्द्र जोशी, रूपेश व्यास, विष्णु कांत व्यास , मंत्रराज पालीवाल, सतुआ बाबा सहित बड़ी संख्या में संत कृपा सनातन संस्थान से स्वयंसेवक व श्रद्धालु मौजूद

Related posts

Leave a Comment