नेपाल में हाल ही में हुए चुनावों में भारत की सीमा से सटे दक्षिणी मैदानों में दो पारंपरिक सियासी ताकतों का एकाधिकार खत्म हुआ है। यहां जनमत पार्टी और नागरिक उन्मुक्ति पार्टी के लिए तराई या मधेस क्षेत्र से संसद पहुंचने का मार्ग प्रशस्त हुआ है। मधेसी विश्लेषक राजेश अहिराज ने इसका कारण भ्रष्टाचार, सांप्रदायिकता व भड़काऊ सियासत को बताया है।
20 नवंबर के चुनावों में तराई की दोनों पारंपरिक ताकतों- उपेंद्र महतो के नेतृत्व वाली जनता समाजवादी पार्टी (जेपीएस) और महंता ठाकुर के नेतृत्व वाली लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी (एलएसपी) की साझा ताकत 50 फीसदी गिरी है। पांच साल पहले, 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में तराई स्थित इन पार्टियों की साझा संख्या 33 थी। हालांकि, इस क्षेत्र में दो नए राजनीतिक दलों के उदय के साथ, उनकी संयुक्त ताकत केवल 16 सीटों तक सीमित हो गई है।
हाल के चुनाव में, जेएसपी को प्रत्यक्ष मतदान के तहत सात सीटें मिली हैं और इसे आनुपातिक मतदान प्रणाली के तहत पांच और सीटें मिलेंगी। इसी तरह, एलएसपी को सिर्फ चार सीटें मिली हैं, लेकिन उसे आनुपातिक मतदान के तहत कोई सीट नहीं मिलेगी, क्योंकि पार्टी राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त करने में विफल रही है।
सत्तारूढ़ नेपाली कांग्रेस पार्टी 20 नवंबर को हुए राष्ट्रीय चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। चुनाव आयोग ने बुधवार को बताया कि उसने 275 सदस्यीय संसद में 89 सीटों पर जीत हासिल की है। पार्टी पदाधिकारियों ने कहा कि प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के नेतृत्व में पांच दलों के गठबंधन के अगले कुछ दिनों में छोटे दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों के समर्थन से नई सरकार बनाने की उम्मीद है।