फर्जी भुगतान दो करोड़ 71 लाख रुपए का महाधिवक्ता भवन निर्माण में हो गए।

प्रोजेक्ट मैनेजर के कारनामों पर कई सालों से विजिलेंस,प्रमुख सचिव तक असहाय
प्रयागराज 2 अगस्त,2022।उत्तर प्रदेश सरकार भष्ट्राचार को जीरो टॉलरेंस नीति के तहत खत्म करने के लिए संकल्पित है।वही प्रयागराज में सीएनडीएस खंड 33 और अब खंड 15 में भष्ट्राचार की चरम सीमा पर व्याप्त है कई सालों से विजिलेंस, प्रमुख सचिव तक असहाय होते दिख रहे है। रामवृक्ष चंचल की तैनाती यूनिट 33 सीएनडीएस प्रयागराज में 2007 से 2012 तक रहे,जहाँ पर जमकर भष्ट्राचार किया,गम्भीर आरोप लगने  बाद इनकी तैनाती निर्माण खंड अधिशाषी अभियंता कार्यालय प्रतापगढ़ में हुई वहां पर भी इनके कारनामे उजागर हुए,सरकारी धन का जमकर दुरुपयोग होने पर निलंबित हुए,साथ ही एफआईआर भी दर्ज हुई,तदुपरांत बहाल होकर फिर से सीएनडीएस 33 में 2019 से अभी तक प्रयागराज में ही कार्यरत हैं। इनके द्वारा फर्जी भुगतान के मामले में विजिलेंस जांच चल रही है फर्जी भुगतान पाने वाले फर्म का नाम यशार्थ कंस्ट्रक्शन जिसका रजिस्ट्रेशन 1 अगस्त 2010, निरस्तीकरण 11 मई 2015 है। फर्जी भुगतान 2 नवंबर 10 से 13 अगस्त 11 तक यशार्थ कंस्ट्रक्शन को किया गया जिसके प्रोपराइटर जीतेश चंचल पुत्र रामवृक्ष चंचल है जो राम वृक्ष चंचल के पुत्र है फर्जी भुगतान के बाद फर्म बंद कर दी गई।फर्जी भुगतान दो करोड़ 71 लाख रुपए महाधिवक्ता भवन निर्माण में हो गए।
           शिकायतों अंबार पर सतर्कता अधिष्ठान ने 17 जून 2019 से ही जांच में भी सारे रिकॉर्ड राम वृक्ष चंचल से मांगे थे लेकिन इनके द्वारा अभी तक कोई रिकॉर्ड विजलेंस विभाग को उपलब्ध नहीं कराए गए। काले कारनामे एवं भष्ट्राचार के बाबजूद शासन में अच्छी पकड़ के चलते मार्च 2022 में यूनिट 33 सीएनडीएस प्रयागराज को सीएनडीएस 15 में विलय करते हुए भ्रष्टाचारी रामवृक्ष चंचल को रिकॉर्ड सहित यूनिट 15 का प्रोजेक्ट मैनेजर बन गए।18 जनवरी 2022 को सतर्कता विभाग ने तत्कालीन प्रमुख सचिव नगर विकास को पत्र लिखकर कहा कि राम वृक्ष प्रोजेक्ट मैनेजर को स्थानांतरित करने की बात कही, लेकिन सीएनडीएस मुख्यालय ने इन्हें स्थानांतरित नहीं किया। इतना ही नहीं 28 जनवरी को प्रमुख सचिव नगर विकास के द्वारा एमडी सीएनडीएस को भी निर्देश दिया गया कि प्रोजेक्ट मैनेजर को अन्यत्र स्थानांतरित करते हुए तत्काल शासन को अवगत कराएं, उसके बाद भी यूनिट 33 को यूनिट 15 में विलय करते हुए इनको ही प्रोजेक्ट मैनेजर बनाकर शासन की आंख में धूल झोंक दिया। महाधिवक्ता भवन 2007 से 2012 तक निर्माण के दौरान प्रोजेक्ट मैनेजर राम वृक्ष चंचल ने महाधिवक्ता भवन के निर्माण के दौरान ही रहते हुए उन्होंने अपने पुत्र के नाम के नाम दो करोड़ इकहत्तर लाख का फर्जी भुगतान कर दिया।
           शासनादेश है कि कोई भी प्रोजेक्ट मैनेजर पद पर रहते हुए अपने पुत्र को काम नही दे सकते है,मगर चंचल ने तो सारे कारनामा कर डाला।इन्होंने बसपा,सपा और भाजपा शासन में भी जमकर पद का दुरूपयोग करते धाक जमाई। पूर्व कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने भी तत्कालीन कैबिनेट मंत्री नगर विकास को जांच हेतु पत्र लिखा था। महाधिवक्ता भवन में विगत दिनों आग लगने के एक हफ्ते पहले दूसरी बार कांच लगाने के लिए 34 लाख रुपए निकल गए। अब सब आग में लीन है। लाख शिकायतों के बाद भी कोई कुछ नही कर सकता अब महाधिवक्ता भवन जो पहले ही विवादों के धेरे में था।अब आग प्रकरण में शासन क्या कार्यवाही करेगी ….दिलचस्प है क्या भष्ट्र अधिकारी पर गाज गिरेगी।अधिकारी से सम्पर्क करने पर फोन नहीं उठा।

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