प्रयागराज की हिंदी पत्रकारिता के दो सौ तिरालिस वर्ष

हिंदी के विकास में प्रयागराज का महत्वपूर्ण योगदान
आज  भी कई पत्रिकाएं निर्लिप्त भाव से कर रही हैं हिंदी की सेवा
  ( डॉक्टर भगवान प्रसाद उपाध्याय )
प्रयागराज
ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व की महानगरी प्रयागराज पूर्व नाम इलाहाबाद की हिंदी साहित्य की पत्रकारिता का   दो सौ  तिरालिस वर्ष पूरा होने जा रहा है और हिंदी के योगदान में इस महानगर का अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान है   हिंदी की अनेक ख्याति लब्ध पत्रिकाओं ने हिंदी का विकास करने में अपनी   महती भूमिका निभाई है  आज भी अनेक लघु पत्रिकाएं हिंदी की सेवा निर्लिप्त भाव से कर रही हैं संसाधन के अभाव में भी जो लोग यहां से पत्रिकाओं का संचालन संपादन कर रहे हैं उनके प्रति हिंदी प्रेमियों को कृतज्ञ होना चाहिए  प्रयागराज की हिंदी पत्रकारिता की सेवा के इतिहास पर यदि हम प्रकाश डालते हैं तो कई उत्कृष्ट पत्रिकाओं के नाम आते हैं यह महानगर शुरू से ही  हिंदी साहित्य का प्रमुख केंद्र रहा है और यहां हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत पंडित बालकृष्ण भट्ट ने 18 77 में हिंदी प्रदीप नामक पत्रिका से किया इसके पश्चात उन्नीस सौ ईसवी में सरस्वती पत्रिका का प्रादुर्भाव हुआ वह 1902 तक काशी से प्रकाशित होती रही चिंतामणि घोष और बाबू श्यामसुंदर दास में इसका श्रीगणेश किया था और 1903 में सरस्वती पत्रिका का प्रकाशन इंडियन प्रेस से पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी के संपादन में सुचारू रूप से शुरू हुआ और इस पत्रिका ने कई ख्याति लब्ध साहित्यकार और कवियों की रचनात्मक प्रतिभा में निखार लाने का सराहनीय काम किया
सरस्वती पत्रिका ने  पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी  पंडित सुमित्रानंदन पंत  जैसे स्वनामधन्य  साहित्यकारों की साहित्यिक प्रतिभा को निखारा  .  सन उन्नीस सौ सात में पंडित मदन मोहन मालवीय ने अभ्युदय नामक पत्र निकाला  1909  में मर्यादा पत्र का प्रकाशन कृष्णकांत मालवीय और संपूर्णानंद के संपादन में हुआ इसके संपादक मंडल में मुंशी प्रेमचंद भी  शामिल रहे इसी के बाद चांद पत्रिका का प्रकाशन शुरू हुआ जिसमें महादेवी वर्मा का उल्लेखनीय योगदान रहा  चांद हिंदी मासिक पत्रिका अपने युग की बहुत चर्चित पत्रिका रही और कई लेखकों ने इसमें अपनी रचनाओं के प्रकाशन को अपना सौभाग्य माना  इसी महानगर से लोकप्रिय हिंदी दैनिक भारत  हिंदी दैनिक  समाचार पत्र की स्थापना काल से ही संपादन की जिम्मेदारी पंडित नंददुलारे वाजपेई को मिली इसी के बाद हिंदी समाचार पत्रों का विकास हुआ 1938 में पंडित सुमित्रानंदन पंत और नरेंद्र शर्मा जी ने  रूपाभ  नामक मासिक पत्रिका का श्रीगणेश किया 1947 में अज्ञेय जी ने प्रतीक त्रैमासिक पत्रिका शुरू की जिसने हिंदी साहित्यकारों का अच्छा मार्गदर्शन किया 1953 में रामस्वरूप चतुर्वेदी तथा लक्ष्मीकांत वर्मा जी के संपादन में नए पत्ते तथा 1954 में रामस्वरूप चतुर्वेदी एवं डॉक्टर जगदीश गुप्त के संपादन में नई कविता पत्रिका निकाली गई 1956 में धर्मवीर भारती और लक्ष्मीकांत वर्मा जी के कुशल कुशल संपादन में निकष नाम की पत्रिका निकली 1963 में  डा. रघुवंश जी  लक्ष्मीकांत वर्मा जी और रामस्वरूप चतुर्वेदी जी के संपादन में  क  ख  ग  नामक पत्रिका का प्रकाशन शुरू हुआ बाद में लक्ष्मीकांत वर्मा जी लखनऊ में दारुल सफा में रहने लगे वहां से भी उन्होंने इस पत्रिका के संपादन का कार्य निष्ठा पूर्वक निभाया
हिंदी साहित्य सम्मेलन से सम्मेलन पत्रिका और राष्ट्रभाषा सन्देश  का प्रकाशन अत्यंत महत्वपूर्ण रहा   राष्ट्रभाषा संदेश की  प्रतियां आज भी  सुदूर हिंदी प्रांतों में  भेजी जाती हैं और  यह पत्र  बहुत ही  ख्याति प्राप्त है इसी प्रकार हिंदुस्तानी अकैडमी की पत्रिका हिंदुस्तानी भी बहुत महत्वपूर्ण पत्रिका है  हिंदुस्तानी के कई विशेषांक बहुत ही चर्चित रहे   .  विज्ञान परिषद से प्रकाशित होने वाली हिंदी की सर्वश्रेष्ठ विज्ञान पत्रिका के रूप में विज्ञान का निरंतर प्रकाशन अपने आप में एक महत्वपूर्ण बात है  वर्तमान में डॉ शिव गोपाल मिश्र के संपादन में विज्ञान पत्रिका पूरे देश में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान बना चुकी है आजादी के बाद महाविद्यालयों और इंटरमीडिएट कॉलेजों की वार्षिक पत्रिकाओं ने भी हिंदी के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया हिंदी के क्षेत्र में यहां अनेक ख्याति लब्ध साहित्यकार हुए और उन्होंने अपने अपने समय में किसी ना किसी हिंदी पत्रिका को महत्वपूर्ण बनाया पंडित देवी दत्त शुक्ल के संपादन में निकलने वाली चंडी पत्रिका ने भी बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया  बाद में वहां से संपादक की वाणी नामक पत्रिका कई वर्षों तक निकलती रही   जिसका संपादन पंडित रमा दत्त शुक्ला ने  पूरी निष्ठा और लगन से  जीवन पर्यंत किया धार्मिक साहित्यिक और सांस्कृतिक पत्रिकाओं में यहां अच्छी खासी संख्या में अपना योगदान दिया भैरव प्रसाद गुप्त के संपादन में कहानीकार पत्रिका निकली बच्चों की भी अनेक पत्रिकाओं ने यहां महत्वपूर्ण भूमिका निभाई यूं तो हिंदी की अनेक पत्रिकाओं ने यहां कालांतर में हिंदी साहित्य के विकास में उल्लेखनीय योगदान किया ठाकुर श्री नाथ सिंह ने दीदी और बालसखा नामक पत्रिका का संपादन किया वे प्रखर पत्रकार थे आजादी के पूर्व हिंदी साहित्य की जो पत्रिकाएं निकलती थी उसमें अनेक पत्रिकाओं ने हिंदी साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई आजादी के बाद भी यहां ख्याति लब्ध साहित्यकारों ने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन करके हिंदी को आगे बढ़ाया डॉ रामकुमार वर्मा जी के संपादन में अनुपमा नामक पत्रिका का प्रकाशन शुरू हुआ था जिसमें डॉक्टर नरेश कुमार गौड़ अशोक भी संपादक मंडल में थे आंचलिक क्षेत्र में हिंदी की पहली पत्रिका साहित्यांजलि 1981 से निकली जिसके संपादक भगवान प्रसाद उपाध्याय थे बाद में यह पत्रिका  साहित्यांजलि प्रभा के नाम से 1986 से मासिक पत्रिका के रूप में अब तक प्रकाशित हो रही है  इस पत्रिका का लोकार्पण विख्यात साहित्यकार नर्मदेश्वर चतुर्वेदी जी ने 15 जुलाई 1986 को जानसन गंज में पंडित ओमकारनाथ त्रिपाठी के चित्रकला भवन में किया जिसकी अध्यक्षता श्रीमती शकुंतला सिरोठिया ने की थी और अंजनी कुमार  दृगेश  डॉक्टर संतकुमार बृजमोहन श्रीवास्तव चंचल श्री प्रेम नारायण गौड़ आदि उपस्थित थे   प्रारंभ में जब यह पत्रिका 1981 में त्रैमासिक  पत्रिका के रूप में शुरू हुई थी तो     इसका लोकार्पण तत्कालीन लोकप्रिय राजनेता पंडित के पी तिवारी ने मकर संक्रांति के मेले में किया था   इस पत्रिका का निबंध विशेषांक और  पंडित चंद्रधर शर्मा गुलेरी स्मृति अंक  बहुत ही चर्चित रहा इसके स्थापना काल से ही  डॉक्टर नरेश कुमार गौड़ अशोक और श्याम नारायण श्रीवास्तव का योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता   श्याम नारायण श्रीवास्तव आज भी इस पत्रिका के संपादकीय विभाग में जुड़े हुए हैं  साहित्यांजलि  प्रभा को  श्रीमती महादेवी वर्मा डॉ रामकुमार वर्मा डॉक्टर जगदीश गुप्त डॉक्टर किशोरीलाल डॉक्टर संतकुमार कैलाश कल्पित केशव चंद्र वर्मा श्रीमती शकुंतला सिरोठिया प्रेम नारायण गौड़ नर्मदेश्वर चतुर्वेदी ठाकुर श्री नाथ सिंह वीरेंद्र बालू पुरी डॉ तिलक राज गोस्वामी अंजनी कुमार दृगेश डॉ प्रभात शास्त्री डॉ मोहन अवस्थी डॉक्टर हरदेव बाहरी डॉ नरेश कुमार गौड़ अशोक कैलाश गौतम पंडित हरि मोहन मालवीय पंडित रमा दत्त शुक्ला डॉक्टर संतकुमार टंडन रसिक स्वामी नीलमणि दास पंडित हेरंब मित्र डॉ बालकृष्ण पांडे ( हिंदी साहित्य सम्मेलन) श्याम मोहन अवस्थी डॉक्टर दूधनाथ सिंह अरुण कुमार अग्रवाल पंडित विद्याधर शुक्ला जैसे विद्वानों का आशीर्वाद प्राप्त हो चुका है
  इसी प्रकार 1984 में वर्तमान साहित्य नामक पत्रिका निकली और उसने एक नया कीर्तिमान बनाया इसी दौर में अनुगमन   त्रैमासिक हिंदी पत्रिका श्री हरिशंकर द्विवेदी अज्ञान के संपादन में निकली
इसी कालखंड में हिंदी की मासिक पत्रिका पहचान तथा उदीयमान नामक पत्रिका में भी हिंदी की सेवा में अपनी महती भूमिका का निर्वाह किया 1983 से साप्ताहिक नवांक  ने भी नवोदित लेखकों को बहुत प्रोत्साहित किया कालांतर में यहां हिंदी के कई महत्वपूर्ण समाचार पत्र और पत्रिकाओं का प्रकाशन शुरू हुआ जिसमें गंगा यमुना का नाम उल्लेखनीय है
   प्रयाग समाचार प्रयाग दर्पण प्रयाग प्रताप देशदूत आदि पत्र पत्रिकाएं महत्वपूर्ण रही   दैनिक समाचार पत्रों के  साप्ताहिक परिशिष्ट  पहले  पूरी निष्ठा और लगन के साथ निकलते थे 1980 से लेकर 1990 तक का जो दशक था वह हिंदी पत्रिकाओं का  स्वर्णिम काल था   सुप्रसिद्ध बाल साहित्यकार श्रीमती शकुंतला सिरोठिया के संपादन में  हिंदी साहित्यकारों के लिए समर्पित त्रै मासिक पत्रिका अभिषेक श्री  का प्रकाशन भी 1984 से शुरू हुआ था कई वर्षों तक यह साहित्यकारों को प्रोत्साहित करती रही प्रयाग की साहित्य पत्रिकाओं की यात्रा बहुत उर्वर है यहां से पिछले 25 वर्षों से गांव की नई आवाज पत्रिका का निरंतर प्रकाशन विजय चितौरी के संपादन में हो रहा है वर्तमान में  हिंदी साप्ताहिक शहर क्षमता ने अपने कई महत्वपूर्ण विशेषांक निकालकर हिंदी के साहित्यकारों को प्रोत्साहित किया आज भी यह निरंतर प्रकाशित हो रहा है  . अनेक समाचार पत्र और पत्रिकाएं हिंदी के उन्नयन में लगी हुई हैं  हिंदी प्रेमियों और समर्थकों की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वे हिंदी की लघु पत्र-पत्रिकाओं को आर्थिक संबल दे कर उन्हें जीवन पर बनाए रखें और इस महानगर की विरासत बचाने में अपनी भूमिका निभाएं

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