नवरात्र के दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी का पूजन, करें घर बैठे मां का दर्शन और जानें विधान

शारदीय नवरात्र में द्वितीया की तिथि को देवी के ब्रह्मचारिणी स्वरूप के दर्शन पूजन का विधान और मान्‍यता है। वाराणसी जिले में नौ देवियों के मंदिर में देवी ब्रह्मचारिणी स्वरूप का मंदिर पक्का महाल में दुर्गा घाट पर स्थित है। इस बार देवी का दर्शन आज 18 अक्टूबर रविवार को हो रहा है। ब्रह्म का अर्थ तप से है और चारणी का अर्थ आचरण करने वाली। तप का आचरण करने वाली देवी के रूप में देवी दुर्गा के द्वितीय स्वरूप का नाम ब्रह्मचारिणी इसी वजह से पड़ने की मान्‍यता है। भगवती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए घोर तप किया था, देवी दुर्गा के तपस्विनी स्वरूप के दर्शन पूजन से भक्तों और उनके साधकों को अनंत शुभ फल प्राप्त होते हैं।

रविवार की दोपहर तक देवी ब्रह्मचारिणी मंदिर में हजारों श्रद्धालुओं ने दर्शन पूजन पर्याप्‍त दूरी और कोरोना संक्रमण खतरों में जारी दिशा निर्देश के साथ किया। मंदिर में मास्‍क लगाकर आने वाले भक्‍तों को ही प्रवेश की इजाजत रही। वहीं सुबह से मंदिर में दर्शन पूजन का क्रम शुरू हुआ तो अनवरत दोपहर तक आस्‍था की कतार लगी रही और पूरा मंदिर हर हर महादेव के साथ देवी गीतों और जयकारे से गूंजता रहा। जबकि शाम की आरती के साथ ही मंदिर में रौनक दोबारा शुरू हो गई जो रात तक जारी रही।शारदीय नवरात्र के दूसरे दिन भगवती दुर्गा की नौ शक्तियों के दूसरे स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी के दर्शन पूजन की मान्‍यता। पुराणों में वर्णित है कि भगवान शिव शंकर को पति के रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी इसलिए उनका नाम तपश्चार्य अथवा ब्रह्मचारिणी पड़ा। देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यंत भव्य माना जाता है। उनके दाएं हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमंडल है। देवी जगदंबा के इस स्वरूप की आराधना से तप त्याग सदाचार संयम और वैराग्य में वृद्धि के साथ विजय प्राप्ति होती है।पूजन का विधान : देवी ब्रह्मचारिणी का ध्यान करते हुए – ‘सर्वस्‍य बुद्धि रूपेण जनस्‍य ह्रदि संस्थिते, स्‍वर्गापवर्गदे देवी नारायणी नमोस्‍तुते’ मंत्र का जाप करते हुए तीन वर्ष की कन्‍या का पूजना करना चाहिए। इस मंत्र की साधना करते हुए देवी मां के पूजन का विधान है।

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