लालगोपालगंज । दीपावली पर धन लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए मिट्टी के दीपक बनाने वाले कुम्हारों के चाक ने गति पकड़ ली है। हिन्दू समाज के तमाम ऐसे भी त्यौहार है जो बिना चाक पर तैयार किए गए बर्तन के नहीं मनाये जाते है कुम्हारों के हाथ जब चाक पर थिरकने लगते हैं तो मिट्टी कई आकर्षक आकारों में दीपक,गणेश प्रतिमा,लक्ष्मी प्रतिमा से लेकर करवे और कई बेहतरीन सामान स्वरूप में आ जाती है।
कुम्हारों के पसीने से आकार ले रहे दीपक दीपावली पर कई घरों को रोशन करने के लिए अभी से दियाली बनाने का काम सुरु कर दिया है। कस्बे के मुनौव्वर अली का पूरा में बुजुर्ग राम औतार सुरु से ही मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करते है। इन दिनों तबियत सही न होने से उन्होंने अपनी चाक की कमान अपने नाती के हाथ मे थमा दिये है। राम औतार का कहना है कि
बदलते परिवेश में मिट्टी के दीपों का स्थान इलेक्ट्रिक झालरों ने भले ही ले लिया हो, लेकिन इसके बावजूद मिट्टी के दीपक का अपना अलग ही महत्व है।चाइनीज इलेक्ट्रिक झालरों के बढ़ते दौर में भी त्यौहारों पर मिट्टी से बने दीपक और अन्य चीजों का क्रेज बना हुआ है।मिट्टी के दीपक को बनाने से लेकर पकाने तक में आने वाला खर्च बढ़ गया है,जिससे उन्हें मेहनत के हिसाब से आर्थिक लाभ नहीं हो पा रहा रहा है। पुस्तैनी धंधा विलुप्त ना हो इसके लिए वह अपने चाक को रफ्तार दे रहे है।