ज्वाला देवी गंगापुरी में धूमधाम पूर्वक मनाई गई रानी लक्ष्मीबाई व भाऊराव देवरस जी की जयंती

प्रयागराज: ज्वाला देवी सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कॉलेज गंगापुरी रसूलाबाद प्रयागराज में रानी लक्ष्मीबाई व भाऊराव देवरस जयंती की पूर्व संध्या पर  विद्यालय में कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस अवसर पर *विशिष्ट अतिथि के रूप में  राग विराग जी(लेखाकार चिट फंड कार्यालय प्रयागराज), मुख्य अतिथि के रूप में  अनुराग पाठक (प्रवक्ता केंद्रीय विद्यालय मनौरी) अध्यक्ष के रूप में  शेषधर द्विवेदी जी (प्रदेश निरीक्षक भारतीय शिक्षा समिति काशी प्रांत)एवं विद्यालय के प्रधानाचार्य  युगल किशोर मिश्र ने रानी लक्ष्मीबाई व भाऊराव देवरस जी के चित्र पर दीपार्चन एवं पुष्पार्चन कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया।*
कार्यक्रम प्रमुख जनार्दन प्रसाद दुबे ने रानी लक्ष्मीबाई के विषय में भैया/ बहनों को बताते हुए कहा कि रानी लक्ष्मीबाई ने स्वातंत्र्य युद्ध में अपने जीवन की अंतिम आहूति देकर जनता जनार्दन को चेतना प्रदान की और स्वतंत्रता के लिए बलिदान का संदेश दिया।
मुख्य अतिथि जी ने  भाऊराव देवरस जी के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुये कहा की वे संघ के साथ स्वाधीनता आंदोलन में भी सक्रिय रहे। यूं तो संघ की शाखा सर्वप्रथम काशी में भैयाजी दाणी द्वारा प्रारम्भ की गयी थी, पर संघ के काम को उ0प्र0 के हर जिले तक फैलाने का श्रेय श्री भाऊराव देवरस जी को है। संघ के साथ-साथ शिक्षा के क्षेत्र में विद्या भारती जैसे संगठन की कल्पना, राष्ट्रधर्म एवं पांचजन्य पत्रिका के माध्यम से समाज को जाग्रत करने का कार्य किया। रानी लक्ष्मीबाई जी के विषय में बताते हुए कहा कि गौस खां की तोपों की मार से नत्था खाँ टिक नहीं सका और रणभूमि से भाग खड़ा हुआ। रानी लक्ष्मीबाई, पुरूषों की तरह कपड़े पहनती और वीर से भेष में रहती थीं। सिर पर लाल टोपी, तलवार और ढाल और पिस्तौल हरदम साथ रखती थीं। काना, मंदरा, झलकारी बाई सखियाँ उसके साथ रहती थीं। लगभग दस महीने रानी ने झाँसी पर शासन किया। उसके राज्य में प्रजा सुखी थी। इसी बीच 21 मार्च अट्ठारह सौ 58 को अंग्रेज सरदार ह्यू रोज, एक विशाल अंग्रेजी फौज लेकर झाँसी में चढ़ आया। दोनों ओर से घन घोर युद्ध होने लगा। रानी की तोपें अंग्रेजों पर कहर बन कर टूंटी। घनगर्जन तोप ने ह्यू रोज की फौज के छक्के छुड़ा दिए।जब ह्यू रोज ने जीत मुश्किल देखी तो उसने किले के ओरक्षा दरवाजे के रक्षक दुल्हाजू को लालच देकर तोड़ लिया। अंग्रेजी सेना किले में घुस आई और मारकाट करने लगी। सरदारों की राय मानकर रानी लक्ष्मीबाई अपने दत्तक पुत्र दामोदर राव को पीठ पर बाँध कर, घोड़े पर सवार होकर निकल पड़ी और कालपी आ गई। कालपी में यमुना किनारे बने किले में तात्या टोपे और नाना साहब के छोटे भाई राव साहब ने रानी का साथ दिया और एक छोटी सेना भी बनाई। पर अंग्रेजों ने यहाँ भी उसका पीछा किया और हमला बोल दिया।कालपी से राव साहब, तात्या टोपे और लक्ष्मीबाई बचते बचाते ग्वालियर पहुँचे और ग्वालियर के किले पर कब्जा कर लिया। पर अंग्रेजी सेना तो जैसे रानी की दुश्मन ही बन हुई थी। महारानी के ग्वालियर पहुँचते ही ग्वालियर के महाराज आगरा चले गए उन्होंने अंग्रेजों को सूचना दे दी। तब अंग्रेजी फौज भी ग्वालियर आ पहुँची। दोनो ओर से घमासान लड़ाई छिड़ गई। इस युद्ध में रानी का घोड़ा मारा गया। उनकी सखियाँ भी वीरगति को प्राप्त हो गईं।
विशिष्ट अतिथि ने रानी लक्ष्मी बाई के विषय में विस्तृत रूप से बताते हुए कहा कि वह भारत की पहली महिला स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थीं जिन्होंने 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया था। इस अवसर पर बच्चों के सर्वांगीण विकास हेतु *इंटरएक्टिव पैनल बोर्ड* प्रदान किया गया, जो बच्चों के शैक्षिक उन्नयन के लिए अति महत्वपूर्ण होगा।
कार्यक्रम अध्यक्ष जी ने अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस व रानी लक्ष्मीबाई तथा भाउराव देवरस जी के जीवन चरित्र पर विस्तृत रूप से प्रकाश डाला।
इस अवसर पर विद्यालय की बहनों ने रानी लक्ष्मीबाई का रूप धारण किया। साथ ही बहन शिक्षा तिवारी व निधि त्रिपाठी ने रानी लक्ष्मीबाई के जीवन पर अपने विचार रखे एवं भैया प्रियांशु शर्मा व आर्यन वर्मा ने भाऊराव देवरस के जीवन पर अपने विचार रखे।
विद्यालय के आचार्य सन्दीप कुमार मिश्र ने सभी भैया बहनों को कार्यक्रम की उपादेयता बताते हुए आभार ज्ञापित किया।
कार्यक्रम का संचालन आचार्या रीता विश्वकर्मा ने किया इस अवसर पर सभी छात्र / छात्रा एवं अध्यापक गण उपस्थित रहे।

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