हनुमान, रामायण के सबसे प्रमुख पात्रों में से एक हैं। श्री राम के परम भक्त हनुमान, साहस, चरित्र, भक्ति और सदाचार के आदर्श प्रतीक हैं। उनके चरित्र में कई ऐसी बातें हैं जो मनुष्य को सीख दे सकती हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमान जी के चरित्र के कारण ही ‘सकल गुण निधानं’ कहा है।
हनुमानजी एकमात्र ऐसे स्वरूप हैं, जो किसी भी कार्य में कभी भी असफल नहीं हुए। उन्होंने जीवन में जो ठाना वह करके दिखाया। उनका यह गुण मनुष्य को अवश्य सीखना चाहिए। क्योंकि कई लोग जीवन की कठिनाईयों से हार मानकर प्रयास करना छोड़ देते हैं।
साहस के प्रतीक
तमाम बाधाओं को पार कर लंका पहुंचना, माता सीता को अपने राम दूत होने का विश्वास दिलाना, लंका को जलाकर भस्म कर देना- ये सभी घटनाएं उनके सहास और बुद्धि को दर्शाती हैं। इससे सीखने को मिलता है कि अगर साहस किया जाए तो कोई काम मुश्किल नहीं है।
हनुमान जी से सीखें भक्ति
हनुमान जी की भक्ति की मिसाल दी जाती है। श्री रामचंद्र का उनसे बड़ा भक्त धरती पर कोई नहीं हुआ। उन्होंने अपना सबकुछ राम जी को समर्पित कर दिया था। हमें उनसे यह गुण सीखना चाहिए कि किस प्रकार निःस्वार्थ भाव से भक्ति की जाती है।
कार्य कुशलता और निपुणता
हनुमानजी हर कार्य में कुशल और निपुण थे। उन्होंने सुग्रीव की सहायता लिए उन्हें श्री राम से मिलाया। श्रीराम की सहायता करने के लिए अपनी बुद्धि से काम लिया। राम जी की सहायता के लिए उन्होंने सागर तक लांघ दिया था।
नेतृत्व का गुण
हनुमानजी के अंदर नेतृत्व का गुण था, तभी वह वानर सेना के सेनापति बने। वह सभी को साथ लेकर चलने में विश्वास रखते थे। सबकी सलाह सुनकर आगे बढ़ने के कारण ही वह सफल हो पाए। ये सब उनके नेतृत्व गुण के कारण ही संभव हो पाया। आज के समय में उनके इस गुण को सीखने की आवश्यकता है।