चन्द्रिका ने आकाशवाणी के बताए अनुसार विधि-विधान से अहोई अष्टमी को अहोई माता का व्रत और पूजा-अर्चना की और तत्पश्चात राधाकुण्ड में स्नान किया। जब वे स्नान इत्यादि के बाद घर पहुंचे तो उस दम्पत्ति को अहोई माता ने साक्षात दर्शन देकर वर मांगने को कहा। साहूकार दम्पत्ति ने हाथ जोड़कर कहा, ‘‘हमारे बच्चे कम आयु में ही परलोक सिधार जाते हैं। आप हमें बच्चों की दीर्घायु का वरदान दें।’’ ‘‘तथास्तु!’’ कहकर अहोई माता अंतध्यान हो गई। कुछ समय के बाद साहूकार दम्पत्ति को दीर्घायु पुत्रों की प्राप्ति हुई और वे सुखपूर्वक अपना गृहस्थ जीवन व्यतीत करने लगे। देवी पार्वती को अनहोनी को होनी बनाने वाली देवी माना गया हैं, इसलिए अहोई अष्टमी पर माता पर्वती की पूजा की जाती है और संतान की दीर्घायु एवं सुखमय जीवन की कामना की जाती है।

हिंदू धर्म में माताएं अपनी संतान की लंबी आयु और सुखद जीवन के लिए कई व्रत रखती हैं। अहोई अष्टमी व्रत ऐसा ही एक प्रमुख व्रत है। यह व्रत करवा चौथ के 3 दिन रखा जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन यह व्रत रखा जाता है। इस बार अहोई अष्टमी व्रत 28 नवंबर 2021 को रखा जाएगा। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। महिलाऐं अपनी संतान की लंबी आयु के लिए इस दिन निर्जला व्रत रखती है और रात में अहोई माता की पूजा के बाद व्रत खोला जाता है। माना जाता है कि यह व्रत रखने से अहोई माता प्रसन्न होती हैं और संतान प्राप्ति का आशीर्वाद प्रदान करती हैं। जिन महिलाओं को संतान ना हो रही हो या संतान की दीर्घायु ना हो रही हों तो उन्हें अहोई अष्टमी का व्रत रखने की सलाह दी जाती है।

अहोई पूजा के लिए ये रहेगा शुभ मुहूर्त

अहोई अष्टमी तिथि प्रारंभ – 28 अक्टूबर 2021 को दोपहर 12 बजकर 51 मिनट से

अहोई अष्टमी तिथि समाप्त – 29 अक्टूबर 2021 को  सुबह 02 बजकर 10 मिनट तक

पूजा का शुभ समय – शाम 6 बजकर 40 मिनट से 8 बजकर 35 मिनट तक

अहोई व्रत की पूजन विधि 

अहोई अष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें। इसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती के समक्ष व्रत का संकल्प लें।

अहोई माता की पूजा के लिए दीवार या कागज पर गेरू से अहोई माता का चित्र बनाएं और साथ ही सेह और उसके सात पुत्रों का चित्र बनाएं।

अहोई माता को रोली, पुष्प, दीप, जल से भरा कलश, दूध भात, मिठाई और हलवा आदि अर्पित करें।

पूजा के समय हाथ में गेंहू के सात दाने और कुछ दक्षिणा लेकर व्रत कथा पढ़ें या सुनें।

कथा सुनने के बाद गेंहू के दाने व दक्षिणा सास या किसी अन्य बुजुर्ग महिला को देकर उनका आशीर्वाद लें।

शाम को तारों को अर्घ्य देकर अपना व्रत खोलें।

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