हिन्दू पंचांग के अनुसार, हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है। बता दें कि भगवान जगन्नाथ की नगरी पुरी में इस यात्रा का शुभारंभ हो चुका है, जिसका हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है।
बता दें कि रथ यात्रा के विशेष दिन पर तीनों भाई-बहन तीन सुंदर रथों पर विराजमान होकर अपनी मौसी के घर यानी गुंडिचा मंदिर जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि रथ यात्रा में विशालकाय रथों का एक अपना महत्व है। आइए जानते हैं, जगन्नाथ रथ यात्रा से जुड़े कुछ अनोखे तथ्य।
भगवान जगन्नाथ का रथ
भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघोष के नाम से जाना जाता है। इस रथ पर लहरा रहे ध्वज का नाम त्रिलोक्यमोहिनी है। प्राचीन काल में इस रथ को गरुड़ध्वज के नाम से भी जाना जाता था। बता दें की नंदीघोष के 16 पहिए होते हैं और इस रथ की ऊंचाई 42.65 फीट होती है। इस रथ के सारथी दारुक हैं। रथ का रंग लाल या पीला होता है और इसलिए दूर से ही भक्त समझ जाते हैं कि भगवान जगन्नाथ का रथ नजदीक आ रहा है।
भगवान बलभद्र का रथ
भगवान बलभद्र या बलराम के रथ का नाम तालध्वज है। इस रथ में कुल 14 पहिए होते हैं और उनके रथ का रंग लाल या हरा होता। बता दें कि इस रथ की ऊंचाई 43.30 फीट होती है और यह भगवान जगन्नाथ के रथ से थोड़ा ऊंचा होता है। इसलिए लोग समझ जाते हैं कि भगवान बलभद्र नजदीक आ रहे है।