प्रयागराज । भारतीय संस्कृत में कुंभ पर्व की परंपरा और प्रयाग – कुम्भ विषय पर आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र के दौरान आज भारत की यशस्वी रानियां की श्रृंखला में शामिल सनातन धर्म की संरक्षक मानव कल्याण राष्ट्र समाज और भारतीय संस्कृति के उत्थान को समर्पित एक महान और प्रेरणादायी नायिका रानी गोमती बीवी केसरवानी (रानी फूलपुर) के जीवन चरित्र की ऐतिहासिक विवेचना करने वाली साक्ष्य आधारित पुस्तक का उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री नंद गोपाल गुप्ता नंदी ने विमोचन किया जिसमें कई प्रान्तों के बड़े इतिहासकारों ने अपनी सम्मति में यह व्यक्त किया है की रानी गोमती बीवी के द्वारा किए गए सनातन धर्म रक्षा एवं लोक कल्याणकारी कार्य इन्हें भारत की महान नारी शक्तियों रानी अहिल्याबाई रानी दुर्गावती रानी रासमती आदि के समकक्ष स्थापित करता है ।
सम्राट हर्षवर्धन शोध संस्थान प्रयागराज एवम मोतीलाल नेहरू प्रौद्योगिकी संस्थान इलाहाबाद के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित एवम मौलाना अबुल कलाम आजाद इंस्टीट्यूट ऑफ एशियन स्टडीज़ कोलकाता के द्वारा प्रायोजित इस समारोह में मंत्री नंद गोपाल गुप्ता नंदी ने पुस्तक का विमोचन करते हुए कहा कि मैं बहुत ही भाग्यशाली हूं कि केसरवानी वैश्य समाज में जन्मी ऐसी प्रख्यात धर्म मर्मज्ञ समाजसेवी सनातन धर्म की रक्षक शिक्षा चिकित्सा के क्षेत्र में अनेको लोक कल्याणकारी कार्य करने वाली अंग्रेजों से डटकर मुकाबला कर अपने रियासत को गुलामी के शिकंजे से बचाने वाली राष्ट्रव्यापी व्यक्तित्व की धनी रानी गोमती बीवी केसरवानी के चरित्र का व्याख्यान करने वाली ऐतिहासिक पुस्तक का विमोचन करने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हो रहा है ।
उन्होंने कहा कि 1876 ईस्वी में हसवा फतेहपुर के अत्यंत समृद्ध सुसंस्कृत व प्रभावशाली जमीदार एवं रईस रामगुलाम के यहां जन्मी रानी गोमती बीवी का विवाह 1892 में फूलपुर स्टेट के राजा प्रतापचन्द्र के साथ हुआ परंतु 30 वर्ष की अल्प आयु में ही राजा प्रताप चंद्र का समय निधन हो जाने के पश्चात इस विषम और संकट की घड़ी में रानी गोमती बीवी ने जिस अदम्य साहस का परिचय देते हुए निसंतान होने के कारण शासन की बागडोर अपने हाथों में संभाली और एक योग्य प्रशासिका का परिचय देते हुए अंग्रेजी सत्ता के सामने कभी भी सर नहीं झुकाया और अपना संपूर्ण जीवन राष्ट्र की रक्षा मानव कल्याण धर्म समाज वा भारतीय संस्कृति के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया वह अत्यंत ही सराहनी है तथा समाज एवं सनातन धर्म की सेवा हेतु उनके द्वारा किए गए अनेकों कार्य भारतीय इतिहास मैं किसी नारी द्वारा किया गया एकमात्र उदाहरण है उनका यह व्यक्तित्व एवं कृतित्व ही उन्हें सम्राट हर्षवर्धन रानी अहिल्याबाई रानी रासमती रानी दुर्गावती रानी लक्ष्मीबाई जैसी महान विभूतियों के समकक्ष खड़ा करता है और इतिहास के पन्नों में उन्हें प्रतिष्ठित करता है ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए न्यायमूर्ति सूर्य प्रकाश केसरवानी निवर्तमान वरिष्ठ न्यायाधिपति इलाहाबाद उच्च न्यायालय जो रानी गोमती बीवी की पौत्री विजयलक्ष्मी केसरवानी के ज्येष्ठ पुत्र हैं ने बताया कि रानी गोमती बीबी न केवल एक कुशल प्रशासक थी वरन वह एक योद्धा भी थीं। इतना ही नहीं वह जितनी बड़ी समाज सेविका थी उतनी बड़ी धर्म परायण और सनातन धर्म की संवाहक और संरक्षक भी थी , जहां भीषण अकाल के समय उन्होंने कई वर्षों तक अपनी रियासत के साथ-साथ आसपास के कई इलाकों के लोगों को नि:शुल्क राशन वितरण कराया लोगों को रोजगार देने के लिए अनेकों तालाबों मंदिरों धर्मशालाओं का निर्माण कराया शिक्षा हेतु अनेक वैदिक संस्कृत विद्यालयों चिकित्सालय का निर्माण कराया वहीं देश के तमाम महत्वपूर्ण धर्म स्थलों व तीर्थ स्थलों बद्रीनाथ केदारनाथ उत्तराखंड काशी विश्वनाथ वाराणसी राम लखन जानकी अयोध्या श्री दाऊजी मथुरा द्वारकाधीश गुजरात रामेश्वरम तमिलनाडु जगन्नाथ जी पुरी उड़ीसा बैजनाथ जी देवघर झारखंड विंध्यवासिनी माता विंध्याचल कामतानाथ जी चित्रकूट आदि धर्म स्थलों के नियमित संचालन एवं राजभोग हेतु कई दशकों तक एक बड़ी धनराशि नियमित प्रतिमाह समर्पित किया इस हेतु उन्होंने अपने 201 ग्रामों को न्यास में निहित कर दिया जो ऐतिहासिक तथ्य हैं।
न्यायमूर्ति सूर्य प्रकाश केसरवानी ने बताया सर्वप्रथम तो यह जानना अति आवश्यक है कि प्रयाग का कुंभ मेला माघ मेला जिस स्थान पर लगता था वह रानी गोमती बीवी की रियासत फूलपुर स्टेट की जमीन थी जिस पर लगभग 6 दशक तक माघ मेला और महाकुंभ मेला लगता रहा जो वह सनातन धर्म के प्रचार हेतु नि:शुल्क देती थी इतना ही नहीं जब वर्ष 1893 – 94 में ब्रिटिश सरकार ने महाकुंभ के आयोजन को कराने से इंकार कर दिया तब रानी गोमती बीवी और उनके पति रायबहादुर प्रताप चंद्र न प्रयाग में कुम्भ की सनातन परम्परा को अवरूद्ध होने से बचाने वा कुंभ की निरंतरता बनाए रखने हेतु कुम्भ के आयोजन का सम्पूर्ण व्यय वहन करते हुए उस वक्त 125000 रुपए ब्रिटिश सरकार को दिया जबकि उस काल में महाकुंभ पर होने वाले शुद्ध व्यय कर एवं किराए की प्राप्तियां को घटाने के बाद लगभग ₹40000 और अर्ध कुंभ का व्यय लगभग 15 से ₹20000 होता था जो कि क्षेत्रीय अभिलेखागारों में उपलब्ध अभिलेखों में देखा जा सकता है। इस प्रकार इस 125000 रुपए से उस वक्त कम से कम तीन महाकुंभ का आयोजन किया गया होगा ।
उक्त 125000 रुपये महाकुंभ हेतु दिए जाने का वर्णन वर्ष 1950 में प्रकाशित पुस्तक ‘लैंड लॉर्ड ऑफ आगरा एंड अवध’ में है जिसके लेखक नूरुल हसन सिद्दीकी तथा अग्रसारित द्वारा डॉक्टर ताराचंद सेक्रेट्री मिनिस्ट्री आफ एजुकेशन भारत सरकार के पृष्ठ 51 पर स्पष्ट रूप से अंकित है । इसके अलावा इलाहाबाद विश्वविद्यालय मध्य एवं आधुनिक इतिहास विभाग के भूतपूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी के कई संपादकीय लेखों में भी महाकुंभ आयोजन हेतु 125000 दिए जाने का वर्णन मिलता है ।
उत्तर प्रदेश के महान एवं यशस्वी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी को यह अवश्य देखना चाहिए कि वर्तमान महाकुंभ पर्व के संपूर्ण आयोजन में भारत की इस महान नारी शक्ति रानी गोमती बीवी को उचित स्थान मिले जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन तन मन धन के साथ राष्ट्र एवं सनातन धर्म की रक्षा एवं लोक कल्याण के लिए समर्पित कर दिया था । उनके किए गए लोक कल्याणकारी कार्यों पर भी शोध की बहुत आवश्यकता है ताकि आज की पीढ़ी उस महान नारी के विषय में जान सके जो कि अपने 43 वर्ष के वैधव्य जीवन में सदैव सेवा का पर्याय एवं नारी शक्ति का एक बिरला उदाहरण रही ।
कार्यक्रम के प्रारंभ में सम्राट हर्षवर्धन शोध संस्थान के अध्यक्ष अनिल कुमार ‘अन्नू ‘ ने आगत अतिथियों एवम मंचासीन विद्वतद्वय का स्वागत करते हुए कहा कि कुम्भ पर्व का प्रचलन कब से प्रारम्भ हुआ? इस सम्बन्ध में ऐतिहासिक साक्ष्यों का अभाव है। लेकिन इस सम्बन्ध में सम्राट हर्ष के शासन काल (606 ईसवी से 645 ईसवी ) में भारत आने वाले चीनी यात्री हवेनसांग का यात्रा विवरण अत्यंत महत्वपूर्ण है। ह्वेनसांग ने अपने यात्रा विवरण में लिखा है कि सम्राट हर्ष प्रत्येक पाँच वर्ष के पश्चात प्रयाग में ‘सर्वस्व दानोत्सव’ आयोजित करते थे, यह कुम्भ अथवा अर्द्धकुम्भ का अवसर रहा होगा। प्रयाग के कुम्भपर्व की ऐतिहासिकता एवं प्राचीनता सिद्ध करने का यह पहला ऐतिहासिक साक्ष्य है। प्रयाग में स्नान दान की परम्परा और प्राचीन रही होगी लेकिन कुम्भ मेले को भव्य एवं व्यवस्थित रूप प्रदान करने व राजकीय प्रश्रय देने का प्रथम श्रेय सम्राट हर्ष को ही जाता है। हवेनसांग इस ‘सर्वस्व दानोत्सव’ को बू-चे-ताई-हुई कहता है। बाण रचित हर्षचरित में इस महोत्सव को महामोक्ष परिषद कहा गया है। 75 दिन तक चलने वाले इस महोत्सव में वे अपने कोष का समस्त धन स्वर्ण, बहुमूल्य वस्तुयें आमंत्रित श्रवणों, ब्राह्मणों तथा दीन अनाथों को दान कर देते थे। प्रायः सर्वस्व दान के अन्तिम दिन वह अपनी बहन ‘राजश्री’ से एक साधारण वस्त्र भिक्षा में प्राप्त कर धारण करते थे। उल्लेखनीय है कि सम्राट हर्ष द्वारा 643 ईसवी में आयोजित छठें दानोत्सव में हवेनसांग स्वयं उपस्थित था। वस्तुतः कुम्भ-अर्द्धकुम्भ-महाकुम्भ का आधुनिक स्वरूप सम्राट हर्षवर्द्धन की अभिरूचियों का ही प्रतिफल है।
उद्घाटन समारोह को सम्बोधित करते हुए विशिष्ट अतिथि पूर्व मंत्री एवम पूर्व सांसद प्रोफेसर रीता बहुगुणा जोशी ने कहा कि जब महाकुंभ की सुरुआत होती है तो प्रयागराज में अध्यात्म की सुरुआत होती है । ये मेेला नही ये हमारे धर्म की संस्कृति की सुरुआत है इस कुंभ मे लोग 45 दिन तक आ कर रहते हैं और अध्यात्म ग्रहण करते है
गंगा यमुना सरस्वती के संगम मे जो स्नान करता है उनके सारे पाप धुल जाता है ।
कार्यक्रम के संयोजक प्रोफेसर प्रदीप कुमार केसरवानी ने मंचासीन अतिथियों का माल्यार्पण कर स्वागत करते हुए कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत किया तथा पुस्तक रानी गोमती बीबी केसरवानी के लेखकद्वय प्रोफेसर प्रदीप एवम श्रीमती उषा केसरवानी ने पुस्तक के विषय वास्तु की विस्तृत जानकारी दी।
बीज वक्ता के रूप में जय मीनेश आदिवासी यूनिवर्सिटी कोटा राजस्थान के कुलपति प्रोफेसर डी पी तिवारी ने तथा मौलाना अबुल कलाम आजाद एशियायी अध्ययन संस्थान कोलकाता के निदेशक डॉ सरूप प्रसाद घोष ने कुम्भ पर्व की विस्तृत व्याख्या की।
कार्यक्रम का संचालन डॉ रंजना त्रिपाठी ने किया