काशी विश्वनाथ कॉरिडोर : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया लोकार्पण, बोले- आत्मनिर्भर भारत के लिए बढ़ाते रहें अपने प्रयास

 प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के दो दिवसीय दौरे पर सोमवार को पहले दिन देश तथा प्रदेश को नायाब तोहफा दिया। वाराणसी आगमन पर शहर के कोतवाल काल भैरव की अनुमति के बाद उन्होंने गंगा स्नान किया और फिर वहां से गंगा जल लेकर श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचे। जहां पर पूजा-अर्चना के बाद श्रीकाशी विश्वनाथ धाम के नव्य स्वरूप का लोकार्पण किया।

प्रधानमंत्री ने इस दौरान वहां पर पधारे विशिष्टजन को संबोधित भी किया। करीब 50 मिनट के संबोधन में उन्होंने इस कारिडोर को बनाने वाले श्रमिकों को भी धन्यवाद दिया। पीएम मोदी ने इस दौरान केन्द्र तथा राज्य सरकारों के काम के साथ ही साथ इतिहास की गर्त में समा चुके आतताइयों का भी जिक्र किया।

वाराणसी में श्रीकाशी विश्वनाथ धाम का नव्य भव्य स्वरूप देश को समर्पित करने आए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि मैं आपसे अपने लिए नहीं, हमारे देश के लिए तीन संकल्प चाहता हूं- स्वच्छता, सृजन और आत्मनिर्भर भारत के लिए निरंतर प्रयास। गुलामी के लंबे कालखंड ने हम भारतीयों का आत्मविश्वास ऐसा तोड़ा कि हम अपने ही सृजन पर विश्वास खो बैठे। आज हजारों वर्ष पुरानी इस काशी से, मैं हर देशवासी का आह्वान करता हूं- पूरे आत्मविश्वास से सृजन करिए, इनोवेट करिए, इनोवेटिव तरीके से करिए। तीसरा एक संकल्प जो आज हमें लेना है, वो है आत्मनिर्भर भारत के लिए अपने प्रयास बढ़ाने का। ये आजादी का अमृतकाल है। हम देश की आजादी के 75वें साल में हैं। जब भारत सौ साल की आजादी का समारोह बनाएगा, तब का भारत कैसा होगा, इसके लिए हमें अभी से काम करना होगा।प्रधानमंत्री श्रीकाशी विश्वनाथ दरबार में बाबा का पूजन-अभिषेक के बाद मंदिर चौक में देश भर से आए संतों व विशिष्ट जनों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि अपने भाव साझा किए। उन्होंने कहा कि हृदय गदगद है, मन आह्लादित है। आप सब लोगन के बहोत-बहोत बधाई हौ। विश्वनाथ धाम का यह पूरा नया परिसर एक भव्य भवन भर नहीं है, यह प्रतीक है, हमारे भारत की सनातन संस्कृति का। यह प्रतीक है, हमारी आध्यात्मिक आत्मा का। यह प्रतीक है, भारत की प्राचीनता का, परंपराओं का। भारत की ऊर्जा का, गतिशीलता का।पीएम मोदी ने कहा कि हमारे पुराणों में कहा गया है कि जैसे ही कोई काशी में प्रवेश करता है, सारे बंधनों से मुक्त हो जाता है। भगवान विश्वेश्वर का आशीर्वाद, एक अलौकिक ऊर्जा यहां आते ही हमारी अंतर-आत्मा को जागृत कर देती है। अलौकिक ऊर्जा अंतरात्मा को आलोकित कर देती है। दिव्य चेतना में अलग ही स्पंदन है, अलग ही आभा है। शास्त्रों में सुना है जब भी कोई पुण्य अवसर होता है सारे तीर्थ, सारे देव-शक्तियां उपस्थित हो जाती हैं। वैसा ही अनुभव बाबा के दरबार में आकर हो रहा है। लग रहा है जैसे हमारा समस्त चेतन ब्रह्मïांड से जुड़ा हुआ है। वैसे अपनी माया का विस्तार बाबा ही जानें। हमारी मानवीय दृष्टि जहां तक जाती है, बाबा धाम के विस्तार से पूरा विश्व जुड़ा हुआ है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि आज भगवान शिव का प्रिय दिन सोमवार है। विक्रम संवत 2078 मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष दशमी तिथि एक नया इतिहास रच रही है। हमारा सौभाग्य है कि हम इस तिथि के साक्षी बन रहे हैं। आज विश्वनाथ धाम अकल्पनीय आनंद, ऊर्जा से भरा है। उसका वैभव विस्तार ले रहा है। इसकी विशेषता आसमान छू रही हैं। आसपास जो प्राचीन मंदिर लुप्त प्राय थे, उन्हें पुनस्र्थापित किया जा चुका है। बाबा अपने भक्तों की सदियों की सेवा से प्रसन्न हुए हैं। बाबा विश्वनाथ धाम का ये पूरा नया परिसर एक भव्य भवन भर नहीं है, यह प्रतीक है, हमारे भारत की सनातन संस्कृति का। यह प्रतीक है, हमारी आध्यात्मिक आत्मा का। यह प्रतीक है, भारत की प्राचीनता का, परंपराओं का। भारत की ऊर्जा का, गतिशीलता का। आप यहां जब आएंगे तो केवल आस्था के दर्शन नहीं करेंगे। आपको यहां अपने अतीत के गौरव का अहसास भी होगा। कैसे प्राचीनता और नवीनता एक साथ सजीव हो रही हैं, कैसे पुरातन की प्रेरणाएं भविष्य को दिशा दे रही हैं।

पीएम ने कहा कि हम इसके साक्षात दर्शन विश्वनाथ धाम परिसर में कर रहे हैं। प्राचीनता व नवीनता सजीव हो रही है। जो मां गंगा उत्तरवाहिनी होकर बाबा के पांव पखारने काशी आती हैं। वह मां गंगा भी आज बहुत प्रसन्न हुई हैं। अब हम जब बाबा के चरणों में प्रणाम करेंगे तो मां गंगा को स्पर्श करती हवा स्नेह देगी। गंग तरंगों की कल-कल का दैवीय अनुभव भी कर सकेंगे। बाबा विश्वनाथ सबके हैं। मां गंगा सबकी हैं। उनका आशीर्वाद सबके लिए है, लेकिन समय व परिस्थितियों के चलते बाबा व मां गंगा की यह सेवा मुश्किल हो चली थी। रास्ता व जगह की कमी हो चली थी। बुजुर्गों व दिव्यांगों को आने में दिक्कत होती थी। विश्वनाथ धाम परियोजना से यह सुलभ हो गया है। अब दिव्यांग भाई-बहन, बुजुर्गजन बोट से जेटी तक आएंगे। स्वचालित सीढ़ी से मंदिर तक आ पाएंगे। संकरे रास्तों से परेशानी होती थी जो कम होगी। पहले यहां जो मंदिर क्षेत्र केवल तीन हजार वर्ग फीट में था, वह करीब पांच लाख वर्ग फीट का हो गया है। अब मंदिर व मंदिर परिसर में 50, 60, 70 हजार श्रद्धालु आ सकते है। पहले मां गंगा का दर्शन फिर विश्वनाथ धाम, यही तो है हर हर महादेव।

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