आप भूखों को खिला दें तो इबादत होगी’

प्रयागराज। साहित्यिक संस्था ‘गुफ़्तगू’ द्वारा शुरू किए गए ऑनलाइन
साहित्यिक परिचर्चा के अंतिम दिन सोमवार को आॅनलाइन मुशायरे का आयोजन
किया गया, जिसका संचालन इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने किया। सबसे पहले मासूम रज़ा
ने भूखों को खाना खिलाने की गुजारिश करते हुए शेर प्रस्तुत किया-‘दान
मंदिर को या मस्जिद को हिमाक़त होगी/आप भूखों को खिला दें तो इबादत होगी।’
विजय प्रताप सिंह ने कहा कि-‘अभी अभी नज़र से जो इश्तिहार गुजरा है/न जाने
क्यों हमारे जिगर के पार गुजरा है।’ ग़ाज़ियाबाद के डीएसपी डाॅ. राकेश
मिश्र ‘तूफ़ान’ ने रुमानी अशआर शायरी पेश की-‘जिसकी ख़ातिर सभी पागल की
तरह रहते हैं/उसकी आंखों में हम काजल की तरह रहते हैं।’ इश्क़ सुल्तानपुरी
ने कोरोना के कोहराम पर कलाम पेश किया- इस कोरोना ने तो कोहराम मचा डाला
है/फिर से इंसान को इंसान बना डाला है।’
इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी के अशआर यूं थे-‘फूल पहुंचा जो तेरे कदमों में/सुब्ह
होते ही ज़िन्दगी महकी। बेला, चंपा, गुलाब सब थे मगर/तुम जो आए तो तीरगी
महकी।’ अनिल मानव ने ज़िन्दगी वास्तविकता की बात की-मुहब्बत की बौछार आई
हुई है/यही ज़िन्दगी की कमाई हुई है।’ डाॅ. शैलेष गुप्त ‘वीर’ ने दोहा पेश
किया-‘तन उनका लंदन हुआ, मन पेरिस की शाम/इधर पड़ी मां खाट पर, उधर छलकते
जाम।’ विज्ञान व्रत की ग़ज़ल लीक से हटकर थी-‘ मुस्कुराना चाहता हूं/क्या
दिखाना चाहता हूं। जिस मकां में हूं उसे अब/घर बनाना चाहता हूं।’
अतिया नूर का शेर बेहद उल्लेखनीय रहा-‘काश लड़ते कभी मुफलिसों के लिए
/हिंदुओं के लिए मुस्लिमों के लिए।’ मनमोहन सिंह तन्हा को शेर यूं
था-हमको होती ना कभी तुमसे शिकायत इतनी/तुम जो करते न कभी हमसे मोहब्बत
इतनी।’ डाॅ. नीलिमा मिश्रा ने रोमांटिक शेर पेश किया- क्या मिला तुमको
दिल ये दुखाने के बाद/आज तुम मिल रहे हो जमाने के बाद।’ नरेश महरानी ने
कहा-‘मेरा भी हो इक अम्बर। मन मंदिर का  हो  सुंदर  उपबन।’ संजय सक्सेना
की पंक्तियां उल्लेखनीय रहीं-देख रहा हूं प्यारे मिट्ठू को/अब भी जिंदा
हैं पिंजरे में। ची ची कर चुप होता बूढा, कोई न सुनता पिंजरे में।’
शगुफ़्ता रहमान ‘सोना’ ने कहा कि-‘विश्वास खुद पर न था/गुफ़्तगू से हमें
प्रेरणा मिली। ग़ज़लें पढ़ते थे हम लबों से/दिल में लिखने की आरजू रही।’
नीना मोहन श्रीवास्तव ने कहा-‘मैं तोड़ना न चाहूँ तुम्हें डाली से
प्रसून/तुम खिल रहे हो अपनी जड़ों से निखर-निखर।
इनके अलावा सागर होशियारपुरी, डाॅ. सुरेश चंद्र द्विवेदी, दया शंकर
प्रसाद, डॉ. ममता सरूनाथत्र ऋतंधरा मिश्रा, शैलेंद्र जय, तामेश्वर शुक्ल
तारक, शैलेन्द्र कपिल, रचना सक्सेना, अर्चना जायसवाल ‘सरताज’ रमोला रूथ
लाल ‘आरजू’ और सुमन ढींगरा दुग्गल ने भी कलाम पेश किया। इसी मुशायरे के
साथ गुफ़्तगू के ऑनलाइन साहित्यिक परिचर्चा का समापन हो गया।

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