दुनियाभर में कोविड-19 के फैलने के कुछ महीने बाद ही इसका टीका बना लिया गया, लेकिन वर्षों शोध के बाद भी एड्स की वैक्सीन नहीं बन पाई है। आखिर इसका कारण क्या है? क्यों दशकों बाद भी एचआईवी/ एड्स के अनुसंधान में तेजी नहीं आई और इसका टीका नहीं बन पाया।
1 दिसंबर (बुधवार) को विश्व एड्स दिवस मनाया जाता है। बावजूद इसके एड्स की वैक्सीन बनाने में सफलता हाथ नहीं लगी है। वर्ष 2020 में एड्स से 6,80,000 लोगों के मारे जाने का दावा किया गया है। बता दें कि ह्यूमन इम्यूनोडिफीसियन्सी वायरस (एचआईवी) से लोगों को बचाने के लिए अभी तक कोई टीका नहीं बना है।
राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी
1983 में एचआईवी की खोज हुई थी, लेकिन कोविड-19 वैक्सीन के विकास पर जो राजनीतिक इच्छाशक्ति और भारी निवेश आया है, वह काफी हद तक एड्स के टीके के अनुसंधान से गायब है। इसके बाद उसकी दूसरी जटिलता एचआईवी के विज्ञान को समझना है। मौजूदा समय में भी एड्स के टीके के अनुसंधान के लिए भार निवेश नहीं आ रहा है।
निवेश नहीं हो रहा
फ्रांसीसी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ एंड मेडिकल रिसर्च के एक शोध निदेशक निकोलस मैनल ने बताया कि फार्मास्युटिकल समूहों के लिए बाजार बहुत कमजोर है और निवेश की भारी कमी है। कई शोधकर्ता टीके के निर्माण को लेकर बहुत प्रेरित होते हैं, लेकिन उन्हें निवेश की कमी का सामना करना पड़ता है।
क्या है एड्स?
एड्स (एक्वायर्ड इम्यूनो डेफिसिएंसी सिंड्रोम) से पीड़ति व्यक्ति में वायरस व्हाइट ब्लड सेल्स, जिन्हें संक्रमण से लड़ने वाली कोशिकाओं के तौर पर जाना जाता है, उन्हें डैमेज करके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को पूरी तरह से खत्म कर देती है। सही समय पर इलाज न मिलने की दशा में व्यक्ति की मृत्यु भी हो जाती है।