जानें, क्यों पुरुष पहनते हैं जनेऊ

सनातन धर्म में सोलह संस्कारों का विधान है। इनमें एक संस्कार उपनयन है। इसे यज्ञोपवीत भी कहा जाता है। इस संस्कार के पश्चात युवा और पुरुष जनेऊ पहनते हैं। ये जनेऊ रेशम या कपास के धागे बने होते हैं। अविवाहित लोगों के जनेऊ में तीन धागे होते हैं। वहीं, शादीशुदा पुरुष 6 धागे वाले जनेऊ पहनते हैं।  प्राचीन समय में जिस बालक का उपनयन संस्कार नहीं होता था। उसे मूढ़ श्रेणी में रखा जाता था। वर्तमान समय में उपनयन संस्कार धूमधाम से किया जाता है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि जब बालक ज्ञान अर्जन योग्य हो जाता है। उस समय उपनयन संस्कार किया जाता है। इससे बालक के मन में चेतना जागृत होती है। ब्राह्मण जाति में आठवें वर्ष में उपनयन संस्कार का विधान है। वहीं, क्षत्रिय में 11वें साल से उपनयन संस्कार किया जाता है है। जबकि, वैश्य में 15वें वर्ष से उपनयन संस्कार होता है। दैवीय काल से उपनयन संस्कार का विधान है।सनातन धर्म में लड़के और लड़की दोनों के उपनयन का विधान है। हालांकि, आजीवन ब्रह्मचारी जीवन व्यतीत करने वाली लड़कियां ही जनेऊ धारण करती सकती हैं। सामान्य लड़की जनेऊ नहीं पहन सकती हैं। ये त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं। साथ ही तीन सूत्र देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के भी प्रतीक हैं। लड़के विवाह से पूर्व 3 तीन धागों के जनेऊ पहन सकते हैं। वहीं, विवाहित लोग 6 धागों से बनी जनेऊ पहनते हैं। उपनयन संस्कार मंडप डालकर किया जाता है। आसान शब्दों में कहें तो धूमधाम से उपनयन संस्कार किया जाता है। इसमें बालक को सबसे पहले हल्दी लगाई जाती है। इसके बाद मुंडन कर स्नान कराया जाता है। इसके अलावा, स्थानीय रीति-रिवाजों का भी पालन किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि जनेऊ धारण करने से भूत-प्रेत की बाधा दूर हो जाती है।

ॐ यज्ञोपवीतम् परमं पवित्रं प्रजा-पतेर्यत -सहजं पुरुस्तात।

आयुष्यं अग्र्यं प्रतिमुन्च शुभ्रं यज्ञोपवितम बलमस्तु तेजः।।

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