सरकार व निकायों को बेदखली व ध्वस्तीकरण कार्रवाई धीमी रखने का निर्देश

प्रयागराज। प्रधानमंत्री की देशव्यापी लाकडाउन की घोषणा के गृह मंत्रालय द्वारा जारी एडवाइजरी को देखते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश के वादकारियों को राहत देने का बड़ा कदम उठाया है।
मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर तथा न्यायमूर्ति समित गोपाल की खंडपीठ ने जनहित याचिका कायम कर 19 मार्च से अगले एक माह के दौरान समाप्त होने वाले सभी अंतरिम आदेशों की अवधि 26 अप्रैल तक के लिए बढ़ा दी है। यह आदेश हाईकोर्ट व इसकी लखनऊ बेंच समेत सभी निचली अदालतों द्वारा पारित अन्तरिम आदेश पर भी लागू रहेगा। कोर्ट ने कहा है जिन अन्तरिम आदेश में समय सीमा नहीं है वहां वह आदेश उसी रूप में समझा जाएगा।
कोर्ट ने यह भी कहा है कि जिन आपराधिक मामले में अग्रिम जमानत या नियमित जमानत दी गई है और एक माह के भीतर उसकी अवधि पूरी हो रही है तो वह अगले एक माह तक जारी रहेगी। कोर्ट ने कहा है कि हाईकोर्ट या जिला अदालतों द्वारा यदि कोई ध्वस्तीकरण या बेदखली आदेश जारी किया गया है तो वह अगले एक माह तक निष्प्रभावी रहेगा। कोर्ट ने कोरोना वायरस के चलते गृह मंत्रालय द्वारा 24 मार्च 20 को जारी एडवाइजरी को देखते हुए कहा है कि राज्य सरकार या नगर निकाय या अन्य कोई ऐसी एजेंसी नागरिकों के खिलाफ ध्वस्तीकरण व बेदखली कार्रवाई करने में धीमा रुख अपनाएगी, क्योंकि कोर्ट बंद हैं। कोर्ट ने आदेश की प्रति प्रदेश के महाधिवक्ता, अपर सालीसिटर जनरल आफ इंडिया, सहायक सालीसिटर जनरल आफ इंडिया, राज्य लोक अभियोजक एवं बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश के चेयरमैन को भेजे जाने का आदेश दिया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने इस जनहित याचिका में जारी आदेश में कहा है कि 18 मार्च 2020 को 19, 20 और 21 मार्च को अवकाश घोषित करने का फैसला लिया गया था। जो इलाहाबाद और लखनऊ बेंच दोनों में लागू किया गया। इसके बाद यह अवधि 25 मार्च तक बढ़ा दी गई थी और पुनः 23 मार्च को अवकाश की अवधि 28 मार्च तक के लिए बढ़ा दी गई। इसी बीच 24 मार्च को देश के प्रधानमंत्री के उद्बोधन के बाद देशव्यापी लाकडाउन की घोषणा को देखते हुए हाईकोर्ट ने अनिश्चितकाल के लिए अदालती कामकाज बंद करने का फैसला लिया।
हाईकोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 226 एवं 227 के अंतर्गत मिली शक्तियों का प्रयोग करते हुए वादकारियों के हित में उनकी आवश्यकताओं को देखते हुए यह सामान्य समादेश जारी किए हैं। हाईकोर्ट का आदेश हाईकोर्ट के अलावा सभी जिला अदालतों, हाईकोर्ट के क्षेत्राधिकार के अंतर्गत आने वाले सभी अधिकरणों व न्यायिक संस्थाओं पर लागू होगा।

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