हम शब्दो की डोरी से रिस्तो को सजा रहे थे, वो हमारी लेखनी को कमजोर समझकर , तलवार की धार से हमको डरा रहे थे, हम तो अपनी लेखनी से इतिहास बना रहे थे,,,,,,
माना कि उनके तलवार में बहुत ज्यादा धार हैं, पर हमारे शब्दो मे छुपा अपना पन व प्यार भरा संस्कार हैं, वो हमें बार बार तलवार की धार दिखा रहे थे
हम अपने लेखनी से इतिहास बना रहे थे,,,,,
सरहद पे जो लहू सहीदो का गिरा
हम हर एक लहू के बून्द को सर माथे पर चढ़ा रहे थे, उन हर बूंदों को शब्दों में सजोकर अपने प्यारे वतन की शान बढ़ा रहे थे, हम तो अपनी लेखनी से इतिहास बना रहे थे,,,,,,
हम लेखनी के बल पर जीवन बिता रहे थे, संसार की हकीकत को शब्दों से सजा रहे थे, पर कुछ लोग हमें दुश्मन समझकर आँखे दिखा रहे थे, पर लेखनी सत्य को दबा नही सकती , चाहे कोई लहू लुहान कर दे पर हम तो अपनी लेखनी से सदा लिखते रहेंगे, कल हम रहे या न रहे पर अपनी कल्पना में सभी को दिखते रहेंगे,,,,,,,
कवी: रमेश हरिशंकर तिवारी। ( रसिक बनारसी )