मेरा परीचय भाग (5)

कैसे मैं तुम सब से  करवाऊ खुद का परीचय , ना कोई शक्ल
मेरी ना कोई सूरत हैं ना इस जग में मेरी कोई  मूरत हैं हर रूप रंग
हर जीव को यहाँ यारो मेरी जरूरत , मैं पूरक हु हर काया का हर जीव को मेरी जरूरत हैं, ,,,,,,2
ना अंग मेरा ना रंग मेरा
पर हर जीव से है संघ मेरा,
जो सांस की डोरी टूट गई
तो सारी दुनियादारी छुटगई
अब तुम्ही बताओ मैं कौसे
करवाऊ इस जग से मेरा परीचय,,,,,2
मैं किस्सो में हु मैं हु कहानी में
मैं जल थल और जिन्दगानी में
मैं हर पल हर एक जीव के संघ हरता हु उनकी सांसो में ,
पर जिसे भी देखो इस जग में
हर कोई मुझसे पूछ रहा मेरा परीचय,,,,,,,2
मुझसे ही सब का परीचय हैं
पर मुझसे ही मेरा परीचय पूछ रहे,इस जग में मैं सब से परीचित हु, मैं किसी से नही अपरिचित हु ,
पर बड़ा गजब तब लगता हैं जब कोई मुझसे ही पूछता हैं मेरा परीचय,,,,,,2
कभी कई दशक कभी गिनती के
दिन कभी पल दो पल हैं मेरा परीचय ,
जल थल पवन प्रकृति के संघ
पल पल जीवन मेरा परीचय ,
सब कुछ मैंने बता दिया तो अब
आप कभी मत पूछना मुझसे आख़िर क्या हैं मेरा परीचय,,,,,,,2
कवी : रमेश हरीशंकर तिवारी
( रसिक बनारसी )

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