सनातन धर्म में ईश्वर प्राप्ति के लिए भक्ति मार्ग का विधान है। आसान शब्दों में कहें तो कलयुग में ईश्वर प्राप्ति का सरल मार्ग भक्ति है। भक्ति कर व्यक्ति ईश्वर को प्राप्त कर सकता है। सनातन शास्त्रों में निहित है कि व्यक्ति द्वारा पूजा, जप, तप करने से ईश्वर प्रसन्न होते हैं। इससे व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं यथाशीघ्र पूर्ण होती हैं। इसके लिए साधक भक्ति कर अपने आराध्य को प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं। इस दौरान साधक पूजा, जप और तप करते हैं। हालांकि, जप यानी मंत्र जाप करते समय कई बातों का ध्यान रखना चाहिए। अनदेखी करने से मंत्र जाप का लाभ प्राप्त नहीं होता है। आइए, मंत्र जाप के नियम जान लेते हैं-
मंत्र जप के नियम
सनातन शास्त्रों में निहित है कि सूर्योदय के समय मंत्र जप करना बेहद शुभ होता है। इससे व्यक्ति को सुख, सौभाग्य, यश और कीर्ति की प्राप्ति होती है।
– तंत्र-मंत्र जानकारों का कहना है कि किसी विशेष फल की प्राप्ति हेतु मंत्र जप दोपहर के समय करना चाहिए। वहीं, शांति कर्म के लिए संध्याकाल से पूर्व मंत्र जप करना चाहिए। जबकि, मारण कर्ण के लिए संध्याकाल का समय सही होता है।
– मंत्र जप करने से पहले संकल्प अवश्य लें। इसके पश्चात ही मंत्र जप करें। इससे सिद्धि प्राप्ति होती है। मंत्र जप के साथ पूजा भी अनिवार्य है। इसके लिए रोजाना ईश्वर की पूजा और आरती करें। इष्टदेव की पूजा के बाद ही मंत्र जप करें।
-मंत्र जप करते समय अपने मन और मस्तिष्क को एकाग्र रखें। मंत्र जाप के समय छींकना, पैर फैलाकर आसन ग्रहण करना, क्रोध करना और झपकी लेने की मनाही है। आसान शब्दों में कहें तो इन चीजों से परहेज करें। ऐसा करने से शुभ फल की प्राप्ति नहीं होती है।
– ज्योतिषियों की मानें तो शंख माला से जप करने से सौ गुना फल मिलता है। इसी प्रकार मूंगे की माला, स्फटिक की माला, मोती की माला, कमल गट्टे की माला, कुशा मूल और रुद्राक्ष की माला (बढ़ते क्रम में) से जप करने पर अनन्त गुना फल मिलता है। वहीं, मंत्र जप के लिए गुरु पुष्य या रवि पुष्य नक्षत्र शुभ माने जाते हैं। जबकि, माघ, फाल्गुन, चैत्र, बैशाख, श्रावण और भाद्रपद महीने में मंत्र जप सिद्धिदायक होते हैं।