आर.के. सिन्हा
संसदीय लोकतंत्र के नाम पर पाकिस्तान में किस तरफ से नाटक होता है, यह सारी दुनिया ने पिछले रविवार को देखा। इमरान खान की सरकार के खिलाफ विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग का पाकिस्तान और शेष संसार को इंतजार था। सरकार का गिरना भी तय था। इमरान खान की सरकार ने बहुमत खो दिया था। उसके पास जरूरी 172 सदस्यों का समर्थन नहीं था। पर वोटिंग से पहले ही सदन के उप सभापति ने सदन को अप्रत्याशित रूप से आगामी 27 अप्रैल तक के लिए स्थगित कर दिया। इसके बाद इमरान खान ने राष्ट्रपति से नेशनल एसेम्बली भंग करने की सिफारिश की और राष्ट्रपति ने एसेम्बल्री भंग भी कर दी।
वहां की नेशनल असेंबली में जो कुछ हुआ उससे साफ लगा कि पहले से इस नाटक की पूरी स्क्रिप्ट तैयार कर ली गई थी, इमरान खान की सरकार को बचाने के लिए। जो इमरान खान विपक्ष पर विदेशों से धन लेने के आरोप लगा रहे थे, लगता है कि वे झूठ बोल रहे थे। उन्होंने एक तरह से कह सकते हैं कि सभापति को पहले से ही खरीदा हुआ था। संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर फैसला आने के बाद इमरान खान ने देश की संसद के फिर से चुनाव कराने की मांग की है। अब वहां पर फिर से नए सिरे से चुनाव होंगे या नहीं, यह पाक सुप्रीम के फैसले के बाद ही पता चल पायेगा। अभी इतना पता चल गया है कि वहां पर जम्हूरियत नाम की कोई चीज नहीं है। सिर्फ लोकतंत्र का नाटक भर होता है। किसी को समझ नहीं आया कि कैसे नेशनल असेंबली के डिप्टी स्पीकर कासिम खान सूरी ने पाकिस्तानी संविधान के अनुच्छेद 5 का हवाला देते हुए इमरान खान सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को बिना वोटिंग के ही खारिज कर दिया… सूरी को सदन की जिम्मेदारी ऐसे वक्त संभालनी पड़ी थी जब विपक्ष ने नेशनल असेंबली के सभापति असद कैसर के खिलाफ ही अविश्वास प्रस्ताव पेश कर दिया था।
पाकिस्तान के मौजूदा घटनाक्रम से यह भी दुनिया को पता चला कि इमरान खान एक नंबर के आत्म मुग्ध इंसान है। उनकी दुनिया ‘मैं’ और ‘मेरे’ के आसपास ही घूमती है। उन्होंने 31 मार्च को देश को संबोधित को करते हुए जो भाषण दिया उसमें 143 बार अपना जिक्र किया। यानी उन्होंने एक मिनट में तीन बार अपनी चर्चा की। उन्होंने “मैं” शब्द का इस्तेमान 88 बार किया। “मुझे” का 17 बार जिक्र किया। उन्होंने अपना नाम इमरान खान 14 बार लिया। उन्होंने “मेरी” 13 बार कहा और “मेरा” 11 मर्तबा बोला। इसके साथ ही अपने साढ़े तीन वर्षों के कार्यकाल के दौरान वे यह साबित करने की कोशिश करते रहे कि नवाज शरीफ, शाहबाज शरीफ और आसिफ अली जरदारी आदि सभी करप्ट हैं। पर वे उन्हें जेल में नहीं डाल सके। उनके मुल्क का अवाम महंगाई जब त्राहि-त्राहि कर रहा था तब वे कहने लगे कि मैं टमाटर के दाम कम करने के लिए देश का प्रधानमंत्री तो नहीं बना। इमरान खान ने पंजाब प्रांत के हाफिजाबाद में एक राजनीतिक रैली को संबोधित करते हुए कि वह आलू और टमाटर की कीमतों को काबू करने के लिए राजनीति में नहीं आए हैं। पाकिस्तान की अवाम को उन तत्वों के खिलाफ मोर्चा खोलना होगा जो धनबल के जरिए हमारी सरकार को गिराने की कोशिशें कर रहे हैं। मतलब उनके लिए महंगाई कोई मसला ही नहीं है। जिस मसले पर उनक देश परेशान है उसको लेकर उनका रुख बेहद ठंडा है।
भारत को लेकर उनकी अदावत तो जगजाहिर है। जब नवाज शरीफ मुंबई हमलों के लिए पाकिस्तान में सक्रिय आतंकी संगठनों को दोषी ठहरा रहे है, तो इमरान खान उन्हें कोस रहे थे। उन्होंने भारत पर ही आरोप लगा दिया था कि उसने ही मुंबई में हमला भी करवाया था। उन्होंने मुंबई हमलों के गुनाहगारों को कभी सजा दिलवाने की गंभीरता से कोशिश नहीं की। मुंबई हमलों का गुनाहगार हाफिज सईद लाहौर में खुले सांड की तरह से घूम रहा है। वह भारत के खिलाफ जहर उगलता है। यह वही इमरान खान हैं जो अपनी मां शौकत खानम के नाम पर बने अस्पताल के लिए पैसा इकट्ठा करने मुंबई में बार-आर आते थे। मुंबई के उद्योगपतियों से पैसा मांगते थे। वे दोनों हाथों से उन्हें पैस देते भी थे। उनमें सबसे आगे गोदरेज परिवार था। उनके अस्पताल के लिए धन एकत्र करने के लिए आमिर खान, विनोद खन्ना और रेखा भी पाकिस्तान गए थे। अब बताइये कि इतनी एहसान फरोमोशी कहां देखने-सुनने को मिलेगी।
इमरान खान के दो मंत्री भारत पर परमाणु हमलों की धमकी देते रहे और उनकी जुबान सिली रही। क्या उन्हें पता नहीं कि शेख राशिद और फवाद चौधरी ने भारत पर बार-बार परमाणु हमले की धमकी दी? वे एक तरफ इस्लाम और अल्लाह का उल्लेख करते हैं अपनी तकरीरों में और दूसरी तरफ वे चुप रहते हैं जब बात भारत पर हमले की होती है। इमरान साहब भूल जाते हैं कि उनके देश का 1948, 1965, 1971 और कारगिल की जंगों के समय क्या हाल हुआ था। क्या इमरान खान का इस्लाम परमाणु युद्ध की इजाजत देता है? कुछ समय पहले इमरान खान सरकार में गृह मंत्री शेख राशिद एक कार्यक्रम में खुल कर दावा कर रहे थे कि उनके देश ने ही मुंबई हमले करवाए थे। उस कार्यक्रम में इमरान खान भी बैठे थे। वे शेख राशिद के दावे को सुन कर मंद-मंद मुस्करा रहे थे।
बहरहाल, जो शख्स भारत से लगातार नफरत करता रहा हो उसका भारत प्रेम अचानक से सबके सामने आ रहा है। पिछले दिनों इमरान खान भारत की विदेश नीति की लगातार प्रशंसा कर रहे थे। इमरान खान ने कहा, ‘मैं हिंदुस्तान को दाद दूंगा… जिस तरह की उनकी विदेश नीति है… हमेशा उनकी विदेश नीति स्वतंत्र रही है और अपने लोगों के लिए रही है। वो अपनी विदेश नीति की रक्षा करते हैं।‘ इससे पहले इमरान खान ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि भारत की विदेश नीति वहां के लोगों के लिए है। पर वे इससे पहले लगातार भारत विरोधी बयानबाजी करते रहे। वे यह सब कर रहे थे तब वे यह भूल जाते थे कि भारत में करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों ने उन्हें भरपूर प्रेम दिया है। पर उन्हें अपने प्रशंसकों की भावनाओं की कहां कद्र है। बहरहाल, इमरान खान की सरकार तो बच गई है, पर उनके लिए भविष्य कोई सुनहरा तो नहीं है। उन्हें विपक्ष पल भर भी चैन से जीने नहीं देगा।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)