दक्षिण भारत के गीतकार एवं संगीतकार उदय कुमार उत्तर भारत में दक्षिण भारतीय भाषाओं के सरल संगीत का जलवा बिखेरना चाहते हैं क्योंकि वह भी यही मानते हैं कि संगीत की कोई जबान नहीं होती और अच्छा संगीत भाषाई सीमाओं से परे सीधे दिल में उतर जाता है। राजधानी लखनऊ में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में हिस्सा लेने पहुंचे उदय कुमार ने भाषा को दिये विशेष साक्षात्कार में कहा, मैंने चार वर्ष पहले … उदया रागम … नामक सांस्कृतिक एवं सामाजिक संगठन शुरू किया था । मैं चाहता हूं कि दक्षिण का संगीत उत्तर भारत में भी लोकप्रिय हो और लोगों की समझ में भी आये।
दक्षिण की क्लिष्ट भाषाओं का संगीत उत्तर में कैसे स्वीकार्य होगा और इसके लिए वह कौन सी अनूठी पहल करने जा रहे हैं, इस सवाल पर कुमार ने कहा, मैं इस पर काम कर रहा हूं । संगीत की दरअसल कोई भाषा नहीं होती। जैसे हिन्दी गाने दक्षिण भारत में लोगों की जुबान पर होते हैं, वैसा उत्तर भारत में नहीं है। मैं भाषा को अत्यंत सरल अंदाज में पेश करने का प्रयास कर रहा हूं और उसे संगीत में पिरोने के बाद यहां के लोगों को वह अवश्य पसंद आएगा। कुमार की संस्था कवि सम्मेलन कराती है तो संगीत संध्या का आयोजन भी करती है । साहित्यिक पाठ भी इस संस्था में होता है। वह इस समय श्री कांची कामकोटि स्वामीजी पर एक वेब सीरीज पर काम कर रहे हैं, जिसका नेतृत्व श्री प्रयाग रामकृष्ण कर रहे हैं। वह हैदराबाद दूरदर्शन के लिए दक्षिण भारत के अत्यंत लोकप्रिय संगीतकार संत त्यागराज पर फिल्म भी बना रहे हैं।
अपने लक्ष्य को लेकर काफी गंभीर नजर आ रहे कुमार से जब शास्त्रीय संगीत की बारीकियों के बारे में सवाल किया गया तो उनका साफ जवाब था, शास्त्रीय संगीत आत्मा है । वह सीधे भगवान से आपको जोड़ता है। उत्तर, दक्षिण, पूरब या पश्चिम … भारत के किसी भी हिस्से का क्यों ना हो, शास्त्रीय संगीत आपके दिलों को आपस में जोड़ता है और इस प्रक्रिया में आपको ईश्वर के पास लेकर जाता है। संगीत में बात अगर उत्तर प्रदेश की करें तो सबसे ज्यादा किससे प्रभावित हैं, इस सवाल पर कुमार का जवाब था कि वह नृत्य के बादशाह बिरजू महाराज, बनारस के पंडित छन्नू लाल मिश्र और भजन सम्राट अनूप जलोटा से विशेष प्रभावित हैं। वह कहते हैं कि चाहे नृत्य हो या गायन, तीनों का अंदाजे बयां अदभुत है। तेलुगू फिल्मों में अपने संगीत की दस्तक दे चुके कुमार ने बालीवुड में काम करने संबंधी सवाल पर कहा कि मुंबई से उन्हें कई आफर मिले हैं लेकिन अभी वह अपना ध्यान सिर्फ संगीत के प्रसार पर लगाना चाहते हैं क्योंकि उनके जीवन का सपना है कि उत्तर भारत में दक्षिण के गाने बजें, सुने जाएं और समझे भी जाएं।