जीवन में सिर्फ भगवान के आश्रित रहो सब कुछ आनंद में आ जायेगा : देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज”

प्रयागराज । विश्व शांति सेवा चैरिटेबल ट्रस्ट के तत्वावधान में 15 से 21 नवम्बर 2021 तक प्रतिदिन इलाहाबाद मेडिकल एसोसिएशन ऑडिटोरियम, महाराणा प्रताप चौराहा – प्रयागराज में दोपहर 1:30 बजे 4:30 बजे तक पूज्य  देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज के मुखारबिंद से श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है।
दूसरे दिन की भागवत कथा में अमर कथा एवं शुकदेव जी के जन्म का वृतांत विस्तार से वर्णन किया गया । कथा के द्वितीय दिवस पर भक्तों ने महाराज जीके श्रीमुख से कथा का श्रवण किया।
भागवत कथा के द्वितीय दिवस की शुरुआत भागवत आरती और विश्व शांति के लिए प्रार्थान के साथ की गई।
आज कथा सभाग्रह में प्रयागराज वरिष्ठ समाजसेवी नागेन्द्र सिंह जी ने अपनी गरिमामयी उपस्थिती दर्ज करवाई एवं व्यास पीठ से आशीर्वाद प्राप्त किया। विश्व शांति सेवा समिति की ओर से उन्हें स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया।
पूज्य  देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा की शुरूआत करते हुए कहा कि प्रयाग की इस पावन भूमि को नमन तीर्थ राज को नमन संगम को नमन अक्षयवट को नमन यहाँ पर जिन – जिन ऋषि मुनियों ने तप किया है उन सब दिव्य विभूति ऋषि मुनियों को भी नमन हमारा बड़ा सौभाग्य है जो हम ऐसे पुनीत पावन समस्त तीर्थो के राजा प्रयागराज में कार्तिक मास के अंतिम दिनों में अपनी वाणी को शुद्ध करने के लिए बैठे हुए है और वो भी भागवत जैसा पुराण सभी पुराणों का सार है श्रीमद भागवत महापुराण ऐसे अद्भुत ग्रन्थ की पुराण की कथा हम श्रवण करने को बैठे है। जीवन में सिर्फ भगवान के आश्रित रहो सब कुछ आनंद में आ जायेगा।
महाराज श्री ने आगे कहा कि बड़े भाग्य से संग मिलता है अच्छे लोगो का अथवा दुर्भाग्य जब हो तब बुरे लोगो का संग मिलता है। ये सब आपके कर्मो पर टिका हुआ है। जिसके कर्ज चुकाने हो तो उनके द्वारा आपको कष्ट प्राप्त होता है। और जिनके कुछ अच्छा करके आये हो पिछले जन्म में उनके द्वारा आपको सुख प्राप्त होता है। आपको पुराणिक जीवन जीने के लिए ये सत्य बात है आपके रिश्तेदार भी आपको उसी कर्म के अनुसार मिलेंगे।
जब आपको कोई दुःख दे रहा हो बेवजह तो सिर्फ एक बात समझनी चाहिए मेरे ही कर्मो का फल भोग रहा हूँ अच्छा है की मैं यही भोगलू। क्रीम पाउडर लगाने से कोई सुखी नहीं होता महंगे कपड़े पहनने से कोई सुखी नहीं होता लम्बी गाड़ियों में चलने से कोई सुखी नहीं होता जब तक अंतःकरण शुद्ध न हो शांत न हो आनंद में न हो तब तक सब कुछ होते हुए भी सब कुछ बेकार लगता है। तो सबसे बड़ा सुख क्या है आंतरिक सुखी ही सबसे बड़ा सुख है।
 देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने कथा का वृतांत सुनाते हुए कहा की श्रीकृष्ण दुखी है कीइस कलयुग के व्यक्ति का कल्याण कैसे हो, राधारानी ने पूछा क्या आपने इनके लिए कुछ सोचा है। प्रभु बोले एक उपाय है हमारे वहां से कोई जाए और हमारी कथाओं का गायन कराए और जब ये सुनेंगे तो इनका कल्याण निश्चित हो जाएगा। बात आई की कौन जाएगा, तो बोले की शुक जी जा सकते हैं, शुक को कहा गया वो जाने के लिए तैयार हो गए। श्री शुक भगवान की कथाओंका गायन करने के लिए जा रहे हैं तो मार्ग में कैलाश पर्वत पड़ा, कैलाश में भगवान शिव माता पार्वती के साथ विराजमान हैं।
भागवत वही अमर कथा है जो भगवान शिव ने माता पार्वती को सुनाई थी। कथा सुनना भी सबके भाग्य में नहीं होता जब भगवान् भोलेनाथ से माता पार्वती ने उनसे अमर कथा सुनाने की प्रार्थना की तो बाबा भोलेनाथ ने कहा की जाओ पहले यह देखकर आओ की कैलाश पर तुम्हारे या मेरे अलावा और कोई तो नहीं है क्योकि यह कथा सबको नसीब में नहीं है। माता ने पूरा कैलाश देख आई पर शुक के अपरिपक्व अंडो पर उनकी नज़र नहीं पड़ी। भगवान शंकर जी ने पार्वती जी को जो अमर कथा सुनाई वह भागवत कथा ही थी। लेकिन मध्य में पार्वती जी को निद्रा आ गई और वो कथा शुक ने पूरी सुन ली। यह भी पूर्व जन्मों के पाप का प्रभाव होता है कि कथा बीच में छूट जाती है। भगवान की कथा मन से नहीं सुनने के कारण ही जीवन में पूरी तरह से धार्मिकता नहीं आ पाती है। जीवन में श्याम नहीं तो आराम नहीं। भगवान को अपना परिवार मानकर उनकी लीलाओं में रमना चाहिए। गोविंद के गीत गाए बिना शांति नहीं मिलेगी। धर्म, संत, मां-बाप और गुरु की सेवा करो। जितना भजन करोगे उतनी ही शांति मिलेगी। संतों का सानिध्य हृदय में भगवान को बसा देता है। क्योंकि कथाएं सुनने से चित्त पिघल जाता है और पिघला चित ही भगवान को बसा सकता है।
श्री शुक जी की कथा सुनाते पूज्य  देवकीनंदन ठाकुर जी महाराज ने बताया कि श्री शुक जी द्वारा चुपके से अमर कथा सुन लेने के कारण जब शंकर जी ने उन्हें मारने के लिए दौड़ाया तो वह एक ब्राह्मणी के गर्भ में छुप गए। कई वर्षों बाद व्यास जी के निवेदन पर भगवान शंकर जी इस पुत्र के ज्ञानवान होने का वरदान दे कर चले गए। व्यास जी ने जब श्री शुक को बाहर आने के लिए कहा तो उन्होंने कहा कि जब तक मुझे माया से सदा मुक्त होने का आश्वासन नहीं मिलेगा। मैं नहीं आऊंगा। तब भगवान नारायण को स्वयं आकर ये कहना पड़ा की श्री शुक आप आओ आपको मेरी माया कभी नहीं लगेगी ,उन्हें आश्वासन मिला तभी वह बाहर आए।
यानि की माया का बंधन उनको नहीं चाहिए था। पर आज का मानव तो केवल माया का बंधन ही चारो ओर बांधता फिरता है। और बार बार इस माया के चक्कर में इस धरती पर अलग अलग योनियों में जन्म लेता है। तो जब आपके पास भागवत कथा जैसा सरल माध्यम दिया है जो आपको इस जनम मरण के चक्कर से मुक्त कर देगा और नारायण के धाम में सदा के लिए आपको स्थान मिलेगा।
श्रीमद् भागवत कथा के तृतीय दिवस पर जड़भरत संवाद, नृसिंह अवतार, वामन अवतार का वृतांत सुनाया जाएगा।

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