एक दुर्लभ ऑटोइम्यून बीमारी है, जिसकी वजह से शरीर में रक्त वाहिकाओं में सूजन आ जाती है। इससे शरीर के कई हिस्से प्रभावित हो सकते हैं। ये एक ऐसा रोग है जिसके कई संकेत और लक्षण हो सकते हैं। इनमें आंखों में सूजन, मुंह में छाले, त्वचा पर चकत्ते, जननांगों में छाले, गठिया और दर्दनाक मुंह के घाव होना शामिल हैं। इसके कारण आमतौर पर रक्त के थक्कों, एन्यूरिज्म, मस्तिष्क या रीढ़ की हड्डी और अंधापन होने जैसी समस्याएं शामिल हैं, जिन्हें दवा की मदद से रोका जा सकता है।
क्या हैं बेहसेट्स सिंड्रोम के लक्षण
त्वचा पर असर- त्वचा पर होने वाला घाव अलग-अलग तरह के हो सकते हैं। घाव विभिन्न हो सकते हैं। आमतौर पर ये घाव पैरों के नीचे हिस्से वाली त्वचा पर होता है, जोकि देखने में पीड़ायुक्त, लाल डेन और गांठदार घाव में जैसे होते हैं। वयस्कों में घाव मुहांसों की तरह होता है। इसे बच्चों में ज्यादा पाया जाता है।
मौखिक अल्सर- ये लक्षण 2/3 बच्चों में सबसे पहला पाया जाता है। बच्चों में ज्यादातर अलग-अलग छोटे मौखिक अल्सर दिखते हैं, ये आमतौर पर होने वाले मौखिक अल्सर की तरह ही है।
लैंगिक अल्सर- इस लक्षण को ज्यादातर पुरुष में देखा जाता है। लैंगिक अल्सर लिंग पर अंडकोष की थैली पर खास तौर पर मौजूद होते हैं। जहां ये व्यस्क पुरुष रोगियों में एक तरह के निशान छोड़ देते हैं वहीं, महिलाओं में बाह्य जननांग खास तौर पर प्रभावित होते हैं।
आँख पर असर- इस बीमारी में सबसे गंभीर लक्षण आँखों में प्रभाव है। बता दें कि ये करीब 50 फीसदी प्रसार है, लेकिन महिलाओं नें 70 फीसदी तक बढ़ता देखा जाता है। हालांकि, महिलाओं की आंखों पर इसका कम असर होता है।
जठरांत्र (आंत) पर प्रभाव- इस लक्षण को खासतौर पर सुदूर पूर्व के रोगियों में देखा जाता है। वहीं, जब आंत का परीक्षण किया जाता है तब अल्सर के बारे में पता चलता है।
जोड़ो पर प्रभाव- बेहसेट्स सिंड्रोम के रोगी बच्चों में करीब 50 फीसदी तक जोड़ों पर प्रभाव मौजूद है। इस दौरान टखने, कलाई, घुटने और कोहनी प्रभावित होती हैं। इनका प्रभाव सामान्य तौर पर सिर्फ कुछ के लिए रहता है और ये खुद सही हो जाता है। इन पर होने वाली सूजन से जोड़ों को किसी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुंचता है।
मस्तिष्क पर प्रभाव- इस लक्षण को आमतौर पर बच्चों में देखा जाता है। इस दौरान मष्तिष्क के पानी के दबाव में बढ़त, झटके, सिरदर्द और चलने में लड़खड़ाना जैसे विशेष लक्षण देखे जा सकते हैं। इसे पुरुषों में काफी गंभीर तौर पर देखा जाता है।
बेहसेट्स सिंड्रोम के कारण
चिकित्सकों के अनुसार बेहसेट्स सिंड्रोम को एक तरह का ऑटोइम्यून डिसऑर्डर कहा जा सकता है। इसके होने की संभावना तब होती है जब शरीर का इम्यून सिस्टम सही तरह से कार्य नहीं करता है और गलती से अपनी ही स्वस्थ कोशिकाओं पर अटैक करने लगता है। इसमें खास भूमिका आनुवांशिक और पर्यावरणीय कारक निभा सकते हैं। कुछ शोधकर्ताओं की मानें तो उनके मुताबिक कुछ खास जींस वाले लोगों में एक तरह के वायरस या बैक्टीरिया से बेहसेट्स सिंड्रोम ट्रिगर होने की संभावना हो सकती है। बता दें कि चिकित्सकों को बेहसेट्स सिंड्रोम क्यों होता है इसका सही कारण नहीं पता है, इस पर शोध जारी है।