आजकल जो बयानबाजी चल रही हैं उसी पर आधारीत हैं यह कविता )
अकबर खिल्जी बाबर हुमायूँ की
ये भूली बिसरी सन्तान हैं,
जो अपने स्वार्थ के खातिर सदियों से अकबर को बताते महान हैं,
मावन खाल के भीतर देखो छुपकर बैठे ये सारे शैतान हैं, ,,,,2
ये चोरों और लुटेरों को अपना बाप बताते है, जीसने खून किया
मेरे अपनो का ये उसको अपना
असली हीरो बताते है,, ये जयचन्द की औलाद हैं जो अपना रंग दिखाते है,,,2
जिन मुगलो ने मेरे देश को लूटा
ये उन मुगलो को गले लगाते है,
जिन्होंने हमारे मन मन्दिर मर्यादा
को लूटा ये उन दानवो और दरिन्दों को बड़ा महान बनाते है ये जयचन्द की औलादे हैं,,
जो अपना रंग दिखाते हैं,,,,,,2
कोई राम को देता गाली हैं
कोई हिन्दुओ को बताता बड़ा बवाली हैं,
जो राम नाम का नारा लगाता हैं कोई उसे दांनव बताता है,
ये अद्भुत ज्ञान ज्ञानचंद नाजाने कहा से आते हैं,
ये हरी भक़्तों को मार के गोली क़ातिल को गले लगाते हैं,
ये जयचन्द की औलादे हैं जो अपना रंग दिखाते हैं,,,,,,2
बना भेष बहुरूपिये का
ये करते खेल तमाशा हैं,
जात धर्म समुदाय देखकर
ये बदलते अपनी भाषा हैं,
लालच द्वेष जलन ईर्ष्या की
ये लगारहे सभी को लाशा हैं,
अपानी फरेबी मीठी जुबान से
इन्होंने सब को फांसा हैं, ये जयचन्द की औलादे हैं जो अपना रंग दिखाते हैं,,,,,,2
कवी : रमेश हरीशंकर तिवारी
( रसिक बनारसी )