चीन का दरवाज़ा बंद, नये घर की तलाश में धनी देशों के प्लास्टिक कचरे के पर्वत

विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक पद्मश्री डा० अजय कुमार सोनकर ने बताया कि चीन में पश्चिमी देशों से हर वर्ष सत्तर लाख टन प्लास्टिक कचरा आयात हो रहा था, जिसमें अकेले अमरीका की भागीदारी सात लाख टन है। इन अति दूषित व कैंसरकारी प्लास्टिक के कचरे से चीन ने तमाम प्लास्टिक के उत्पाद बनाकर दुनिया को लौटाया, इन घृणित कचरे से बने प्लास्टिक के उत्पाद बहुत सस्ती कीमत पर उपलब्ध होने के कारण भारत जैसे लो कास्ट कंट्री में खपत सबसे ज्यादा है। और इस तरह भारत विश्व का सबसे बड़ा प्लास्टिक कचरे का उत्पादक देश बन गया। जिसकी चर्चा पिछले माह दुनिया- भर में हुई किन्तु इसके पीछे के असल कारण को कही छुपा लिया गया।
डा० अजय ने बताया कि पूरी दुनिया से पहुँच रहे रोगकारी पर्यावरण नाशक इस कचरे को २०१८ से चीन ने अपने देश में लेने से मना कर दिया है।
2017 में, चीन सरकार ने प्लास्टिक कचरे के आयात में कटौती शुरू कर दी। फिर बड़ा धमाका हुआ: जनवरी 2018 में, इसने लगभग सभी आयातों पर प्रतिबंध लगा दिया। पिछले साल, चीन ने 2016 के अपने कुल आयात का 1 प्रतिशत से भी कम आयात किया। इसका मतलब है कि प्लास्टिक की एक बड़ी मात्रा को कहीं और जाने की तलाश है।
डा० अजय ने बताया कि क्यूं अचानक २०१८ से प्लास्टिक के कचरे को खपाने के नये नये रास्ते खोजे जा रहे हैं जिसमें प्लास्टिक के कचरे के उपयोग से सड़क बनाये जाने की परियोजना प्रमुख है। डा० अजय को ६ साल पहले अपनी प्रयोगशाला में टिस्यू कल्चर पर कार्य करने के दौरान समुद्री सीप के मेंटल टिस्यू में माइक्रान साइज के प्लास्टिक के कुछ कण मिले। उन्हें आश्चर्य हुईं कि टिस्यू में कोई भी चीज सिर्फ खून के रास्ते ही पहुँच सकती है, और खून में सिर्फ भोजन से। इस प्रकार डा० अजय की प्लास्टिक के भयावह रूप पर अध्ययन की शुरुआत हुई। अध्ययन के दौरान भोजन श्रंखला में पहुँचे प्लास्टिक के सूक्ष्म कणों के श्रोत का पीछा करते करते उन्होंने पाया कि प्लास्टिक हमारे हर तरफ़ है। हमारी साँस लेने वाली वायु, पीने के जल, हमारे भोजन हर जगह प्लास्टिक के सूक्ष्म कण मौजूद हैं। उन्होने बताया कि वातावरण में तैरते प्लास्टिक के सूक्ष्म कण इतने हल्के होते हैं कि वाष्पीकरण के द्वारा बादल में पहुँचकर वर्षा के द्वारा पृथ्वी के पोर पोर में पहुँच गये हैं, हमारे महासागर, नदियाँ, ग्लैशियर, पर्वत, जंगल सब जगह प्लास्टिक पहुँच गये हैं। आज पूरी दुनिया से मनुष्यों के खून में व तमाम अंगों में प्लास्टिक के सूक्ष्म कण पाये जाने की व उसके दुष्प्रभाव की खबरें लगातार आ रही हैं।
वास्तव में जब प्लास्टिक आपदा पर चर्चा होती है तो सिर्फ प्लास्टिक कचरे के निस्तारण को बड़ी समस्या की तरह पेश करके बात की जाती है। जबकि असल तबाही प्लास्टिक के उपयोग के कारण है। आज हमारा हर भोजन, पेय पदार्थ, औषधियाँ, सब प्लास्टिक में पैक हैं छत पर रखी पानी की टंकी, पानी के पाइप सब प्लास्टिक के हैं यहाँ तक की ब्लड बैंकों में खून तक प्लास्टिक के पाउच में रखे व इस्तेमाल किये जाते हैं।
ये सारे प्लास्टिक पेट्रोलियम श्रोत से बनाये जाते हैं जिनमें अनगिनत कैंसरकारी रसायन पाये जाते हैं जो आज मनुष्य व पर्यावरण के अस्तित्व के लिये बहुत बड़ा खतरा बन चुके हैं।

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