इमरान की पार्टी पर प्रतिबंध के फैसले का सरकार को सहयोगियों से भी नहीं मिल रहा समर्थन

पाकिस्तान सरकार के जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पर प्रतिबंध के विवादित फैसले से सियासी हंगामा शुरू हो गया है और कई हितधारकों ने भी इसे अलोकतांत्रिक करार दिया है। साथ ही कहा कि इस फैसले को लागू करने के दूरगामी असर होंगे। पाकिस्तान सरकार ने सोमवार को गैर कानूनी तरीके से विदेश से चंदा लेने, दंगों में संलिप्त होने और कथित तौर पर ‘राष्ट्र विरोधी’ गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाते हुए पीटीआई पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की थी।

पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) नीत सरकार ने 71 वर्षीय खान और पूर्व राष्ट्रपति आरिफ अल्वी सहित अन्य पर देशद्रोह का मुकदमा चलाने की भी चेतावनी दी है। पीटीआई ने इस फैसले को ‘हताशा में उठाया गया’ कदम और संघीय प्रशासन में हड़बड़ाहट का संकेत बताया। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी(पीपीपी), अवामी नेशनल पार्टी, जमीयत उलेमा ए इस्लाम और जमात ए इस्लामी जैसे दलों ने भी इस फैसले की आलोचना की है। पूर्व विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी नीत पीपीपी ने इस विवादित कदम से किनारा कर लिया है।

पार्टी ने कहा कि खान की पार्टी पर प्रतिबंध लगाने से पहले उससे चर्चा नहीं की गई। केंद्र में पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-नीत) सरकार में सहयोगी पीपीपी की सूचना सचिव शाजिया अता मारी ने कहा कि उनकी पार्टी पीटीआई पर प्रतिबंध को लेकर सरकार से चर्चा करेगी। पीएमएल-एन के पूर्व नेता एवं अवाम पाकिस्तान नाम से अपना दल बनाने वाल शाहिद खाकान अब्बासी ने भी इस कदम पर आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा कि सत्तारूढ़ गठबंधन संविधान को समझने में असफल रहा है और बिना सोचे समझे अनुच्छेद-6 को लागू किया है क्योंकि शासक स्वयं देशद्रोह के मुकदमों का सामना कर रहे हैं।

अब्बासी ने चेतावनी दी कि इससे देश में अशांति फैलेगी और कहा कि वही गलती की जा रही है जो पीटीआई के संस्थापक इमरान खान ने की थी। उन्होंने कहा कि सरकार को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए क्योंकि उसका अपना जनादेश सवालों के घेरे में है। जमीयत उलेमा ए इस्लाम-एफ के नेता हाफीज हमदुल्लाह ने भी सरकार के इस फैसले की आलोचना की और आश्चर्य व्यक्त करते हुए सवाल किया कि क्या इस फैसले से राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता आएगी। जमीयत ए इस्लामी ने भी फैसले का विरोध किया और कहा कि यह स्पष्ट है कि यह फैसला अदालत में कानून की कसौटी पर खरा नहीं उतरेगा।

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