अब देश में वह समय आ गया है कि भारत में समान नागरिक संहिता कानून लागू कर दी जाए। इसकी देश जनता लम्बे समय से इंतजार कर रही है और देश को आज इस कानून की बहुत ही जरूरत हैं। दुनियां के हर देश में एक देश एक कानून है लेकिन भारत में एक देश दो कानून इस प्रकार की विचित्र व्यवस्था स्वस्थ लोकतंत्र एवं सभ्य समाज के खिलाफ है।
देश के कुछ शरारती तत्व एवं राष्ट्र शत्रु अपने छड़ीक लाभ के लिए समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के वास्तविक स्वरूप को गलत ढंग से प्रचारित एवं दुष्प्रचारित कर रहे हैं इस प्रकार के कृत्य करने वाले कभी देश के हितैषी नहीं हो सकते ये लोग केवल देश के भोली भाली जनता के हित के साथ खेलवाण करते हैं।
(यूसीसी) में क्या है क्या नहीं है इसके क्या प्रविधान होंगे,इस सब दुबिधा को कानून ममंत्रालय एवं विधि आयोग को चाहिए कि पुरे देश में अपने संसाधन के अनुसार जागरुकता अभियान चला कर जानकारी दे जिससे देश की जनता में न कोई भ्रम हो और न ही इन्हें कोई भ्रमित कर सकें, इससे देश में समान नागरिक संहिता कानून लागू करने में बल मिलेगा और इसका बिरोध करने लोगों को मुहिकी खानी पडेगी।
समान नागरिक संहिता को लेकर दुष्प्रचार करने वालों के खिलाफ एवं उन पर शख्त लगाम लगाने के लिए सरकार को कठोर निर्णय लेना होगा।
पिछले दिनों प्रधानमंत्री जी ने कई जनसभाओ में अपनी सरकार की प्रतिबद्धता दोहराते हुए कहा कि समान नागरिक संहिता वर्तमान समय की मांग है,उधर भारतीय
विधि आयोग की तरफ से बड़ी से समान नागरिक सहिता के लिए देश के लोगों से सुझाव और सलाह मांगे जा रहे हैं इससे स्पष्ट होता है कि मोदी सरकार समान नागरिक संहिता कानून (यूसीसी) को लागू करने के लिए अडिग और प्रतिबद्ध है।
इस पर प्रधानमंत्री जी ने अपने संबोधन में
स्पष्ट रूप से कह भी चुके हैं कि देश के कुछ राजनीतिक पार्टियां जिसमें कुछ को जनता नकार चुकी है, कुछ लड़खड़ा रही है और कुछ तो अपने अस्तित्व की जंग लड रही है ये सब अपनी अपनी दुकान चलाने के लिए समान नागरिक संहिता क बिरुध देश एक वर्ग विशेष को भड़काने एवं गुमराह करने का कार्य कर रहे है।
अनेक राजनीतिक दल और कुछ सामाजिक-धार्मिक संगठन जिस तरह समान नागरिक संहिता के खिलाफ खड़े होते दिख रहे हैं, वह शुभ संकेत नहीं समान नागरिक संहिता के खिलाफ उठ रही आवाजें न केवल संविधान निर्माताओं के के सपनों के विरुद्ध हैं, बल्कि महिलाओं के अधिकारों की अनदेखी करने वाली भी हैं। इसके अतिरिक्त ये एक देश में दो विधान को स्थिति बनाए रखने वाली भी हैं। विश्व के किसी भी पंथनिरपेक्ष देश में अलग-अलग निजी कानून नहीं हैं, लेकिन भारत में वे इसके बाद भी बने हुए हैं कि संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में यह लिखा गया है कि राज्य देश के सभी लोगों के लिए एक समान कानून बनाएगा। क्या यह विचित्र नहीं कि संविधान लागू होने के कुछ समय बाद ही संहिताबद्ध कर दिया गया, लेकिन अन्य समुदायों के निजी कानून बने रहने दिए गए। निःसंदेह ऐसा वोट बैंक की सस्ती राजनीति के कारण किया गया। इसका कोई मतलब नहीं कि सात दशक बाद भी अलग-अलग समुदाय भिन्न-भिन्न निजी कानूनों के जरिये संचालित होते रहें और वे भी तब, जब उनके कारण महिलाओं के अधिकारों की उपेक्षा होती हो और वे अन्याय का शिकार बनती हो। समान नागरिक संहिता को लेकर लोगों को किस तरह गुमराह किया जा रहा है, इसका पता इससे चलता है कि कुछ राजनीतिक दल यह प्रचारित करने में लगे हुए हैं कि इससे विभिन्न समुदायों की धार्मिक आज़ादी में हस्तक्षेप होगा। यह निरा झूट है। समान नागरिक संहिता से किसी समुदाय की धार्मिक रीतियों में कोई हस्तक्षेप नहीं होने वाला। वह तो केवल सामाजिक कुरीतियों को दूर करने में सहायक होगी। जैसे बाल विवाह, तीन तलाक की कुप्रथा खत्म करने की जरूरत थी, वैसे ही उन कुरीतियों को भी खत्म किया जाना चाहिए, जिनके कारण महिला में इसी कारण कई बार विभिन्न उच्च न्यायालय और यहां तक कि सर्वोच्च न्यायालय भी समान नागरिक संहिता की आवश्यकता जता चुका है। समान नागरिक संहिता के खिलाफ दुष्प्रचार इसीलिए किया जा रहा है, क्योंकि आम लोगों को इसका भान नहीं है कि उसमें क्या और कैसे प्रविधान होंगे? इसे देखते हुए उचित यह होगा कि विधि आयोग लोगों के सुझाव प्राप्त कर यथाशीघ्र समान नागरिक संहिता का कोई मसौदा देश की जनता के विचारार्थं पेश करे। इससे ही समान नागरिक संहिता को लेकर दुष्प्रचार करने वालों पर लगाम लगेगी। विश्व में समान नागरिक संहिता अमरीका, पाकिस्तान, बांग्लादेश, तुर्की, इंडोनेशिया, सूडान, आयरलैंड, मलेशिया में लागू है। अगर देश में समान नागरिक संहिता लागू होने पर सभी समुदाय के लोगों को एक समान अधिकार दिए जायेंगे। लैंगिक समानता को बढ़ावा मिलेगा। समान नागरिक संहिता लागू होने से भारत की महिलाओं की स्थिति में सुधार होगा। कानूनों में सरलता और स्पष्टता आएगी। सभी नागरिकों के लिए कानून समझने में आसानी होगी। व्यक्तिगत या धर्म कानूनों के आधार पर होने वाले भेदभाव को समाप्त किया जा सकेगा। मुस्लिम समाज में बेटी की शादी की न्यूनतम आयु 9 साल है। समान नागरिक संहिता लागू होने से मुस्लिम लड़कियों की छोटी आयु में विवाह होने से रोका जा सकेगा। धार्मिक रूढ़ियों के कारण समाज के किसी वर्ग के अधिकारों के हनन को रोका जा सकेगा। मुस्लिम समाज में अभी भी कई तरह के तलाक हो रहे हैं जिनका खामियाजा मुस्लिम महिलाओं को भुगतना पड़ रहा है। प्रत्येक नागरिक को अपने धर्म का शांतिपूर्ण क्रिया करने और बढ़ावा देने का अधिकार दिया गया है। संविधान में समान नागरिक संहिता कानून के संबंध में विभिन्न रूपों में और आर्टिकल के रूप मे यूसीसी की चर्चा की गयी है। इस आर्टिकल में राज्य को देश में सभी नागरिकों के लिए एक यूनिफार्म सिविल कोड लागू करने के लिए कहा गया है। ऐसे में संवैधानिक आधार पर अब हर हाल में देश में समान नागरिक संहिता लागू करने का वक्त आ चुका है। (लेखक,वरिष्ठ पत्रकार आचार्य श्रीकान्त शास्त्री राजनीतिक विश्लेषक हैं)