अखाड़ा परिषद में फूट, अनी अखाड़ों ने बनाई दूरी, नहीं आए नरेंद्र गिरि की षोडसी में

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद में हरिद्वार कुंभ में हुआ मनमुटाव खत्म होने की बजाय बढ़ता जा रहा है। उम्मीद थी कि अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि की षोडशी व उनके शिष्य बलवीर गिरि के पट्टाभिषेक में 13 अखाड़ों के महात्मा शामिल होंगे। श्रीनिरंजनी अखाड़ा ने समस्त अखाड़ों को निमंत्रण भी भेजा था, लेकिन वैसा हुआ नहीं। वैष्णव सम्प्रदाय के श्रीदिगंबर अनी, श्रीनिर्मोही अनी व श्रीनिर्वाणी अनी अखाड़ों के महात्मा कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए। इसके जरिए उन्होंने बड़ा संदेश दिया है। अखाड़ा परिषद में फड़ी फूट साफ नजर आने लगी है। वैष्णव अखाड़े अखाड़ा परिषद अध्यक्ष पद की मांग कर रहे हैं।

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि की 20 सितंबर को संदिग्ध हालात में मृत्यु हो गई थी। इसके बाद से अखाड़ा परिषद अध्यक्ष का पद खाली है। नया अध्यक्ष बनाने को लेकर परिषद में मंथन चल रहा है। वैष्णव परिषद (वैष्णव अखाड़ों का संयुक्त संगठन) के कार्यवाहक अध्यक्ष श्रीमहंत राजेंद्र दास का कहना है कि नरेंद्र गिरि की समाधि में तीनों अनी अखाड़ों के महात्मा शामिल हुए थे। सबने उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की थी। अब भंडारा खाने के लिए आने का कोई औचित्य नहीं था। पहले जैसी आत्मीयता अब नहीं रही। बताया कि बीते मार्च-अप्रैल में हुए हरिद्वार कुंभ मेला में वैष्णव अखाड़ों की उपेक्षा की गई थी। हमें उचित जमीन व सुविधाएं नहीं दिलाई गई। तभी अखाड़ा परिषद से अलग होने की घोषणा कर दी गई थी। अब नरेंद्र गिरि के ब्रह्मलीन होने के बाद नए अध्यक्ष का चुनाव किया जाएगा, हमारी मांग है कि नया अध्यक्ष वैष्णव अखाड़ों से बनाया जाय। ऐसा न होने पर हम अलग राह पकड़ लेंगे। वहीं, अखाड़ा परिषद के महामंत्री महंत हरि गिरि का कहना है कि नया अध्यक्ष कौन होगा? अभी उस पर चर्चा नहीं हो रही है। दशहरा अथवा दीपावली का पर्व बीतने के बाद अध्यक्ष पद पर सहमति बनाई जाएगी। आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म के संरक्षण व उसके प्रचार-प्रसार के लिए अखाड़ों की स्थापना की थी। मौजूदा समय 13 अखाड़े हैं। जूना, निरंजनी, महानिर्वाणी, अग्नि, अटल, आह्वान व आनंद संन्यासी अखाड़े माने जाते हैं। वैष्णव अर्थात वैरागियों के अखाड़े दिगंबर अनी, निर्वाणी अनी व निर्मोही अनी हैं, जबकि उदासीन के अखाड़ों में बड़ा उदासीन, नया उदासीन व निर्मल शामिल है। समस्त अखाड़ों को एकजुट करने के लिए 1954 में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का गठन किया गया। अखाड़ा परिषद में हर अखाड़े के महात्माओं का प्रतिनिधित्व होता है। परिषद में अध्यक्ष व महामंत्री का पद प्रभावशाली रहता है। कुंभ मेला में परिषद के अध्यक्ष व महामंत्री से राय लेकर शासन-प्रशासन सारी तैयारी करते हैं।

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