आर. के. सिन्हा
तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में युवा महिला पशु चिकित्सक के वीभत्सतापूर्ण बलात्कार के बाद निर्ममतापूर्ण हत्या करने वाले सभी चारों अपराधियों को अब पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में मार गिराया गया हैं। नेशनल हाइवे 44 पर ही हुई यह मुठभेड़ जहां यह जघन्य अपराध हुआ था। पुलिस इन सभी आरोपियों को उनके द्वारा जुर्म कुबूले जाने के बाद उन्हें
लेकर राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच 44) पर अनुसॅंधान के स्वाभाविक क्रम में क्राइम सीन को रिक्रिएट करवाने के लिए ले गयी थी। मामले की सॅंवेदनशीलता को देखते हुये रात का वक्त चुना गया। वैसे भी यह दुष्कर्म रात में ही हुआ था। पुलिस के अनुसार गहरी धुंध का फायदा उठाते हुए आरोपियों ने पुलिस का हथियार छीन भागने की कोशिश की। पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश भी की , लेकिन वह नाकाम रही।अपराधियों ने पुलिस पर पत्थरबाजी भी की। अंतत: पुलिस ने आत्मरक्षार्थ फायरिंग की और मुठभेड़ के बाद चारों दुष्कर्मी मारे गये।
इन दानवों के मारे जाने पर कुल मिलाकर देश खुश है। 6 दिसंबर को सुबह जब लोगों की आंखें खुलीं तो पहली खबर जो देश को सुनने को मिली, वह थी हैदरबाद रेप केस के आरोपियों के पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने की। इन दानवों के मारे जाने से जनता को सुकून सा मिला। हालांकि किसी की मौत पर जश्न मनाने मे हमारी सॅंस्कृति का विश्वास तो नहीं है , लेकिन, इन चारों हैवानों की मौत पर जश्न मनाने का देश भर में एक स्वाभाविक माहौल बन गया।
यह सही है कि न्यायिक व्यवस्था के जरिए ही न्याय होना चाहिए। आरोपियों को खुद को निर्दोष साबित करने का पर्याप्त मौका भी मिलना चाहिए। क्योंकि, हमारी न्याय व्यवस्था ऐसा ही कहती है। लेकिन, फास्ट ट्रैक, कठोर कानून, सख्त सजा जैसी बातें तो बरसों से लोग बाग सुन ही रहे हैं। निर्भया केस के बाद यह माना भी गया कि शायद कुछ बदलेगा… पर सात साल में कुछ भी बदला क्या?
स्थितियों में बदलाव के उलट कठुआ, हैदराबाद, उन्नाव… यानी घिनौने और बर्बरतापूर्ण रेप के एक से एक बढकर वीभत्स मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। दरिंदगी देखिए, सिर्फ रेप करने से उन दरिंदों का पौरुषत्व पूरा नहीं हुआ तो वे लड़कियों को जिंदा जलाने, पत्थरों से कुचलने तक लग गए। हम इंसाफ के लिए मोमबत्तियां जलाते रहे और वे दरिंदे लड़कियों को जिंदा जलाते रहे। आखिर यह कहां का इंसाफ है?
मानवाधिकार की वकालत करने वाले तो यह कहेंगे ही कि मुल्जिमों से लेकर मुजरिमों तक, सभी के मानवाधिकार हैं।