हिन्दी कविता : फूल,,,

जो कांटे🌵 बनकर बैठो गे तो कोई ना पास तुम्हारे आएगा,
सुनी होगी बगिया घर की
ना कोई तुम्हे अपनाएगा,
सुख दुःख जो भी आये जीवन मे
हर कोई तुमसे करतायेगा ,,,,,2
सच कहता हूं मानो कहना ,
ना कांटे🌵 बनकर तुम रहना ,
जो बनना हैं तो फूल🥀 बनो
ना किसी के खातीर शूल बनो,
जीवन की बगिया महकेगी तुम सब के खातीर फूल  बनो,,🌸,,,,,,2
मन्दीर मस्जिद हो या हो शिवालय फूल 🌻हर जगह अपनी खुशबू फैलाता हैं,
कही हार कही माला बने कही
 चादर बनाकर चढ़ाया जाता हैं,
पर हर हाल हर रूप में फूल🌺
अपना फर्ज निभाता हैं,,
इशलिये तो यारो कहता हूं
तुम कांटे🌵 नही एक सुन्दर फूल🌹 बनो,,,,,2
फूल🌼  प्यार आस्था और अमन प्रेम की प्यारी खुशबू फैलाता हैं,,
सुख दुःख जो भी आये जीवन मे
फूल🌷 हर जगह अपना फर्ज निभाता हैं,
कही डोली कही कही अर्थी पर
कही सेजो पर सजाया जाता हैं
कही देवालय कही मदिरालय
फूल 🌻हर जगह उड़ाया जाता हैं,
पर हर रूप में हर हाल में फूल🌾
अपना फर्ज निभाता हैं,,,,,,2
फूलो🌹 की  खुशबू के  भाँती
इस सारे जग में घुल जाओ तुम,
अपने पराये सभी लोगो संघ बड़े प्रेम से मिल जाओ तुम,
ना बनकर काटा 🌵किसी को भी
अब कोई चोट पहुँचाओ तुम,
चलो यार  अब छोड़ो सारी बातें
एक प्यारे से फूल💐 बन जाओ तुम,,,,,,,2
कवी : रमेश हरीशंकर तीवारी
( रसिक  बनारसी )

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