रेप व बर्बर हत्या के आरोपी को मृत्यु दंड की हो सजा

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता संविधान विशेषज्ञ अमरनाथ त्रिपाठी अध्यक्ष सेंटर फॉर कांस्टीट्यूशनल एंड सोशल रिफॉर्म ने कहा है कि निर्भया कांड के जनांदोलन के फलस्वरूप पास्को ऐक्ट की धारा 6 में संशोधन कर 12 वर्ष से कम आयु की बच्चियों से दुराचार के आरोपियों को मृत्युदंड देने का प्रावधान किया गया है। हैदराबाद की पशु चिकित्सक के साथ बर्बर दुराचार व जिंदा जलाकर मार डालने की घटना के बाद अब समय आ गया है कि फांसी देने का कानून लागू किया जाय।
त्रिपाठी का कहना है कि बर्बर दुराचार हत्या से गंभीर अपराध है। यह सभ्य समाज पर कलंक है। हत्या की घटनाओं में अपराधी व पीड़ित परिवार प्रभावित होता है। जब कि दुराचार व हत्या की घटनाएं पूरे समाज को झकझोरने वाली होती है, जो सभ्य समाज पर बदनुमा दाग है। भारतीय संस्कृति में महिलाओं को मां का स्थान दिया गया है। उन्हें देवी की संज्ञा दी गयी है।
त्रिपाठी ने कहा कि प्रोफेसर हालैंड ने अपनी पुस्तक जूरिस्प्रूडेन्स कानून व पुलिस की तुलना में कानून की गरिमा को सर्वोच्च माना गया है। कानून प्रजा में भय पैदा कर अपराध करने से रोकता है। पुलिस अपराधियों को पकड़ कर सजा दिलाने में मदद करती है। सजा का उद्देश्य भय पैदा करना ही है। सजा अपराधियों को सुधारने के लिए नहीं है। अपराधियों को सुधारने की परिकल्पना करने वालो के कारण जघन्य अपराधों में वृद्धि होती जा रही है। त्रिपाठी का कहना है कि सजा का प्रावधान अपराध की गंभीरता के सापेक्ष सभ्य समाज को सुरक्षित रखने का केंद्र बिंदु होना चाहिए। न्यायाधीश स्वयं के विवेक एवं अवधारणाओं से परे सजा सुनाये। क्षमायाचना पर भी यही दृष्टि रखना चाहिए।

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