राष्‍ट्रपति बाइडन के इस बाण से ड्रैगन हुआ घायल

चीनी राष्‍ट्रपति शी चिनफ‍िंग के साथ अमेरिकी राष्‍ट्रपति जो बाइडन की वर्चुअल बैठक के ठीक बाद बाइडन प्रशासन के इस कदम से चीन को मिर्ची जरूर लगी होगी। दोनों नेताओं की बैठक के बाद राष्ट्रपति बाइडन ने डेमोक्रेसी पर वर्चुअल समिट बुलाई थी। बाइडन के इस आमंत्रण पर करीब 110 देशों ने हिस्‍सा लिया। खास बात यह है कि इसमें चीन को आमंत्रित नहीं किया गया है, जबकि ताइवान को बुलाया गया। बाइडन की डेमोक्रेसी कार्ड के क्‍या कूटनीतिक मायने हैं। इस कार्ड के जरिए अमेरिका ने चीन को क्‍या बड़ा संदेश दिया। भारत के लिए यह क्‍यों खास है। आइए जानते हैं कि अमेरिका के इस कदम को प्रो. हर्ष वी पंत (आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में निदेशक, अध्ययन और सामरिक अध्ययन कार्यक्रम के प्रमुख) क‍िस नजरिए से देखते हैं। उनकी नजर में इसके क्‍या मायने हैं।अमेरिकी राष्‍ट्रपति बाइडन का लोकतंत्र पर महासम्‍मेलन के बड़े मायने हैं। दरअसल, चिनफ‍िंग और बाइडन के बीच हुई वर्चुअल बैठक बेनतीजा रहने के बाद बाइडन प्रशासन ने शायद यह तय कर लिया है कि चीन को कूटनीतिक मोर्चे पर शिकस्‍त करना है। उसे दुनिया के अन्‍य मुल्‍कों से अलग-थलग करना है। लोकतंत्र पर चीन के बह‍िष्‍कार को इसी कड़ी के रूप में देखना चाहिए। आने वाले समय में बाइडन प्रशासन की नीति में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है। राष्‍ट्रपति बाइडन चीन से सामरिक या रणनीतिक संघर्ष के बजाए कूटनीतिक दांव से चित करने की रणनीति बना सकते हैं।शीत युद्ध के दौरान पूर्व सोवियत संघ और अमेरिका के बीच सामरिक और वैचारिक संघर्ष एक साथ चलते थे। नाटो संगठन का उदय भी इसी रूप में देखा जाना चाहिए। नाटो एक व्‍यवस्‍था, एक विचार, एक हित वाले देशों का एक शक्तिशाली संगठन है। यह प्रत्‍यक्ष या अप्रत्‍यक्ष रूप से पूर्व सोवियत संघ के खिलाफ था। इसका मकसद पूर्व सोवियत संघ को हर मोर्चे पर घेरना था। पूर्व सोवियत संघ के पतन के बाद नाटो की भूमिका में बदलाव आया है। चीन की महाशक्ति बनने की होड़ में बाइडन प्रशासन एक बार फ‍िर इस नीति पर लौट आया है।

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