प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया छोड़ने की सोची हैं। मै व्यक्तिगत तौर पर इसका समर्थन करता हूँ। उन्होंने इस सोशल माध्यम के अधिकतम प्रयोग को क्रांति दिया है। चूंकि उनके अनुवाई करोड़ों में हैं जो इन्हें अपना आदर्श मानते हैं, इसलिए उन्होंने इसके दूरगामी परिणामों को समझते हुए यह निर्णय लिया होगा। श्री नरेंद्र मोदी यह भली भांति समझते होंगे कि ज्यादातर लोगों की सोशल मीडिया के प्रति आसक्ति उन्हें आभासी दुनिया में ही जीने को विवश कर देती है, वो लोग वास्तविक दुनिया से और जीवन की गहराई व इसके रहस्यों से दूर होते चले जा रहे हैं। उन्होंने यह संदेश देने की कोशिश की है कि यही सब कुछ नहीं है, इससे बाहर आने की या इससे अनासक्त रहने की जरूरत है। क्योंकि सोशल मीडिया के ज्यादातर लोग नशे से बदतर शिकार होते जा रहे है जिसके वजह से सामाजिक दायित्व और बंधन से दूर हटते दिख रहे है।जनजीवन प्रभावित होने लगा है।सोशल मीडिया की विश्वसनीयता कमजोर होती जा रही है।सोशल मीडिया के सदुपयोग कम दुरूपयोग ज्यादा मिलने की खबर बराबर चर्चा का विषय बन चुका है।लोगों ने गलत तरीके से निजता को उधेड़बुन की जाल में कर जीवन को बर्बाद होने की खबर भी समाचार पत्रों में प्रकाशित हो रहा है।
सोशल मीडिया नेटवर्किंग एक शक्ति है, और शक्ति का प्रयोग हमेशा सावधानी से किया जाता है। जब कभी भी शक्ति के नए खोज का आविष्कार हुआ, उसने सृजन और विध्वंस दोनों के द्वार खोले हैं। पुरातनकालीन तांत्रिक शक्तियां हों या आधुनिक युग की परमाणुवीय शक्ति दोनों में ही मानवता या जीवन के नाश करने के साथ ही उत्थान की अदभुत क्षमता है।एक बार स्वामी विवेकानन्द के गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस ने प्रिय शिष्य विवेकानंद (नरेंद्र) को अपनी सारी शक्तियां देने की बात कही तो स्वामी विवेकानंद ने यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि अभी वो इसके लिए पूरी तरह तैयार नहीं हैं, और कहीं ऐसा न हो कि इन शक्तियों का प्रयोग वो मानवता की भलाई के बजाय अपने निजी स्वार्थों में या अज्ञानवश मानवता के ही विरुद्ध करने लगें। कहने का तात्पर्य है कि जब तक आप हृदय से पूरी तरह शुद्ध न हो जाएं,अपने आप को सिद्ध न कर लें, मानव मात्र के लिए पूर्ण रूपेण समर्पित न हो जाएं, शक्ति के प्रयोग से विध्वंस की संभावना विद्यमान रहेगी।शायद इसी तरह का दृश्य की कल्पना से माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने सोशल मीडिया से दूर जाने का संकल्प ले रहे हो।उनके लिए देश और राष्ट्र सर्वोपरि है।जनमानस में संदेश देना चाह रहे हो कि अब सब भारतीय नागरिक अपने मूल संस्कृति के स्वरूपों की ओर लौट कर एक नए भारत के निर्माण में निश्चित भाव से सहभागिता देकर मजबूत भारत बनाएं।