कबतक होती रहेगी जानमाल की बलि अग्निकांडों में

आर.केसिन्हा

 

13 जून, 1997 को राजधानी के उपहार सिनेमाघर में हुए दिलदलहाने वाले अग्निकांड के बाद अब दिसंबर   2019 की तिथि भी  राजधानी दिल्ली की मनहूस तिथियों की सूची में शामिल हो गई है   राजधानी में  हुए ताज़ा  भीषण अग्निकांड में 45 से अधिक जानें चली गई। याद रखिए  कि इस तरह के  हादसों से देश को बहुत ही गंभीर क्षति पहुंचती है। तात्कालिक भी और दीर्धकालिक क्षति भी  इस तरह की दुर्घटनाओं के कारण देश में आने वाला  विदेशी निवेश तेजी घट सकता है। देश की छवि भी धूमिल हो सकती है।  विदेशी निवेशक उन देशों  में  निवेश से पहले दस बार जरुर ही सोचते  हैं,  जहाँ  आतंकी हादसे या अग्नि काण्ड लगातार होते रहते हैं। इससे देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ना तो स्वाभाविक ही है। यह तो समझना ही होगा कि कोई निवेशक उस जगह पर जायेगा ही क्योंजाएगा जहाँ उसका निवेश ही सुरक्षित नही हो। लगता हैभारत  में किसी अग्निकांड के बाद इस बिन्दु पर कभी विचार भी नहीं किया जाता।

हमारे यहां रस्म अदायगी होती रहती हैहादसों के बाद घटनास्थल पर मुख्यमंत्री और मंत्रीगण पहुंच जाते हैं  कुछ देर तक घटनास्थल पर गमगीन खड़े रहने के बाद फोटो सेशन और टीवीबाईट देकर वहां से निकल जाते है  लेकिनअगर इन्होंने  ही समय रहते नियमों का उल्लंघन करके चलने वाली संस्थानो पर  ऐक्शन ले लिया होता  तो ऐसे हादसे ही  होते। तब दिल्ली की फिल्मिस्तान कॉलोनी जैसा हादसा टला जा सकता था  वहां की रोजमर्रा जिंदगी भी आज अपनी रफ्तार से चल रही होती। सोए लोग हमेशा के लिए मौत की गोद में सो नहीं गए होते।

अग्निकांडों के आकड़े भयावह और चौकानें वाले हैं  पिछले पांच वर्षों में देश भर के अग्निकांडों में प्रतिदिन 62 जानें गई हैं  वर्ष  2015 से अबतक 18740 मौतें अग्निकांडों में हो चुकी हैं। हजारों करोड़ की सम्पति का नुकसान हुआ वह अलग से 

इस वर्ष हुई सात बड़े अग्निकांडों का विवरण तो किसी को भी झकझोर कर रख देंगें। अभी 8 दिसम्बर को दिल्ली में हुई अग्निकांड में 43 जानें गईं दो महीने पहले 20 अक्टूबर को डिब्रूगढ के अग्निकांड में  5 जानें गईं मुम्बई में 13 अगस्त को केमिकल फैक्ट्री में हुए अग्निकांड में 13 जानें गई। इसी तरह 24 मई को सूरत के एक कोचिंग इंस्टीट्यूट की अग्निकांड में 23 होनहार बच्चों की जानें गईं। मई 9 तारीख को पुणे की एक कपड़े की गोदाम में आग लगने से 5 लोग मारे गए। इसी प्रकार 23/24 फरवरी की रात चेन्नई के एरो इंडिया शो में 150 कारें जलकर भस्म हो गई और 12 फरवरी को दिल्ली के करोलबाग में लगी आग में 17 लोग मारे गये।  

ये आकड़े भयावह हैंकिसी भी संवेदनशील मनुष्य के लिए ह्रदय विदारक भी हैं। लेकिननौकरशाहों और स्वायत्त शासी संस्थानों पर इसका असर क्यों नहीं होता?

आश्चर्य की बात तो यह है कि दिल्ली की तंग आबादी वाले रिहाइशी इलाके की पांच मंजिली इमारतों में फैक्ट्रियां क्यों और कैसे चल रही थीं,जहाँ सैकड़ों गरीब भी दिनरात काम भी कर रहे थे और रह भी रहे थे,पर दिल्ली सरकार,एमसीडी और दिल्ली पुलिस सभी बेखबर थे।

दिल्ली  के उपहार सिनेमा में सभी आनंदपूर्वक बार्डर’ फिल्म देख रहे जिसमें 59 अभागे लोग मारे गये। 

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