उत्कृष्ट आचरण और नैतिकता की जननी है संस्कृत – कुलपति

 संस्कारों पर बल देती है संस्कृत भाषा-  देवेंद्र
मुविवि में संस्कृत सप्ताह के अंतर्गत व्याख्यानमाला
प्रयागराज।
संस्कृत संवेदना की भाषा है। संस्कृत शून्य से अनंत तक की यात्रा है। संस्कृत का उत्थान भारतीय संस्कृति का उत्थान है। यह देववाणी है। भावनाओं  एवं संवेदनाओं से परिपूर्ण संस्कृत साहित्य को जन जन तक पहुंचाने के लिए इसके व्यापक प्रचार-प्रसार की आवश्यकता है।
उक्त उद्गार मुख्य अतिथि डॉ आनंद शंकर श्रीवास्तव, पूर्व प्राचार्य, सीएमपी पी जी कॉलेज ने उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय में संस्कृत सप्ताह के अंतर्गत सोमवार को भारतीय संस्कृति: संस्कृताश्रिता विषय पर आयोजित व्याख्यान में व्यक्त किए।
मुख्य अतिथि डॉ श्रीवास्तव ने कहा कि संस्कृत का उत्थान भारतीय संस्कृति का उत्थान है। उन्होंने संस्कृत को विश्व की सबसे सरल, सहज व व्यावहारिक भाषा बताया। उन्होंने कहा कि अब हमें संस्कृत के संरक्षण व संवर्धन की दिशा में और अधिक प्रयत्नशील होना पड़ेगा, तभी भारतीय संस्कृति का भी रक्षण हो सकेगा।
मानविकी विद्या शाखा द्वारा आयोजित संस्कृत सप्ताह के अंतर्गत व्याख्यान की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रोफेसर सीमा सिंह ने कहा कि संस्कृत देव भाषा है। यह सहज एवं सरल है तथा प्रयोग में लाने वाली सर्वाधिक मधुर भाषा है। उन्होंने कहा कि हमारी अस्मिता संस्कृत एवं संस्कृति में निहित है। प्रोफेसर सिंह ने संस्कृत के महत्व को बताते हुए संस्कृत भाषा सीखने के लिए प्रेरित किया। कुलपति प्रोफेसर सिंह ने वेदों, पुराणों और भारतीय संस्कृति का उदाहरण देते हुए बताया कि संस्कृत भाषा ज्ञान, उत्कृष्ट आचरण और नैतिकता की जननी रही है।
व्याख्यान के विशिष्ट वक्ता संस्कृत भारती के क्षेत्रीय संगठन मंत्री  देवेंद्र पांण्ड्या ने संस्कृत में उद्बोधन देते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति व संस्कृत भाषा एक दूसरे के पूरक हैं। हम सभी को परस्पर मिलकर संस्कृत के उत्थान के लिए प्रयत्नशील होना चाहिए, जिससे भारतीय संस्कृति की उन्नति हो सके।उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा में निहित वसुधैव कुटुंबकम की भावना भारतीय संस्कृति की मूल भावना है। जिससे अनुप्राणित होकर समस्त  विश्व  कल्याण पथ पर अग्रसर हो सकता है। श्री पांण्ड्या ने संस्कृत भाषा के महत्व को बताते हुए कहा कि संस्कृत भाषा संस्कारों पर बल देती है। संस्कृत का उन्नयन ही भारतीय संस्कृति का उन्नयन है।
विषय प्रवर्तन करते हुए डॉ अतुल कुमार मिश्र ने कहा कि आदिकाल से संस्कृत व्यवहार की भाषा रही है। संस्कृत आज के युग की मांग है। अतः राष्ट्र के प्रत्येक नागरिक का दायित्व है कि संस्कृत भाषा के उत्थान के लिए प्रयास करें।
व्याख्यान का संचालन आयोजन सचिव डॉ स्मिता अग्रवाल ने एवं विषय प्रवर्तन डॉ अतुल कुमार मिश्र ने किया। अतिथियों का स्वागत मानविकी विद्याशाखा के निदेशक प्रोफेसर सत्यपाल तिवारी तथा धन्यवाद ज्ञापन कार्यक्रम के संयोजक प्रोफेसर विनोद कुमार गुप्ता ने किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के निदेशक गण, अधिकारी गण, शिक्षक, शिक्षार्थी एवं कर्मचारीगण आदि उपस्थित रहे।

Related posts

Leave a Comment